Thursday, November 21, 2024
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पंजाब के पूर्व CM प्रकाश सिंह बादल का 95 साल की उम्र में निधन, पीएम नरेंद्र मोदी ने जताया गहरा दुख

चंढीगढ़। पंजाब के पूर्व CM प्रकाश सिंह बादल का मंगलवार रात को 95 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्हें सांस लेने में तकलीफ के बाद 16 अप्रैल को मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 25 अप्रैल को रात 7.42 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए शिरोमणि अकाली दल के चंडीगढ़ स्थित कार्यालय में रखा गया है। जहां पर हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता, पंजाब की पूर्व CM राजिंदर कौर भट्‌ठल, हरियाणा के पूर्व CM ओमप्रकाश चौटाला, पूर्व CM कैप्टन अमरिंदर सिंह की सांसद पत्नी परनीत कौर के अलावा अकाली नेता और उनके समर्थक उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। कुछ देर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चंडीगढ़ पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि देंगे।

दोपहर बाद चंडीगढ़ से बठिंडा के लिए उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाएगी। गुरूवार यानी कल उनका बादल गांव में अंतिम संस्कार होगा। वहां बठिंडा-बादल रोड पर किन्नुओं के बाग में 2 एकड़ में जगह खाली की जा रही है। गांव के श्मशान घाट में जगह कम होने के कारण उनका अंतिम संस्कार खेत में किया जाएगा।

देश के सबसे बुजुर्ग नेता, 2 दिन का राष्ट्रीय शोक

बादल देश की राजनीति के सबसे बुजुर्ग नेता थे। उनके निधन पर केंद्र सरकार ने दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया है, जिसमें दो दिन पूरे देश में लगा ध्वज आधा झुका दिया जाएगा। वहीं सभी आधिकारिक मनोरंजन कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं। पंजाब में कल गुरुवार को सरकारी छुट्‌टी की घोषणा कर दी गई है।

नरेंद्र मोदी भी छूते थे पैर

सियासी तौर पर उनका रसूख इस कदर था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके पैर छूते थे। उन्होंने 75 साल का सफल राजनीतिक जीवन जिया। इस दौरान वह 5 बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने लगातार 11 चुनाव जीते।

पिछले साल वह अपनी सीट लंबी से चुनाव हार गए थे। उसके बाद वह सियासी तौर पर ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। केंद्र सरकार के कृषि सुधार कानूनों का विरोध हुआ तो शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था। इसके बाद प्रकाश सिंह बादल ने अपना पद्म विभूषण तक लौटा दिया था।

प्रकाश सिंह बादल का 75 साल का राजनीतिक करियर…

20 साल की उम्र में सरपंच बनने के बाद प्रकाश सिंह बादल करीब 75 साल तक राजनीतिक जीवन में हमेशा राजनीति के केंद्र में रहे। पंजाब राज्य की राजनीति का उन्हें बाबा बोहड़ कहा गया, वहीं केंद्र में भी उनकी दहाड़ हमेशा ऊंची रही। जनसंघ व भाजपा की तरफ झुकी राजनीति के प्रमुख चेहरों में शुमार रहे। भाजपा ने भी उन्हें कभी नजरअंदाज नहीं किया।

इसके बावजूद वे केंद्र की राजनीति में वे अधिक समय नहीं ठहरे। मार्च 1977 में केंद्र में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार बनी तो प्रकाश सिंह बादल उसमें केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री बनाए गए। कुछ समय बाद लोकसभा में भी चुने गए, लेकिन केंद्र की राजनीति उन्हें पसंद नहीं आई। कुछ महीनों के बाद ही केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ दिया। उसके बाद वह पंजाब की राजनीति से बाहर नहीं निकले।

पहली चुनावी जीत के बाद गांव का नाम अपने साथ जोड़ा

प्रकाश सिंह बादल पहली बार बादल गांव के सरपंच चुने गए थे। तब उनकी उम्र थी महज 20 साल थी। फिर बादल से उनके लिए अगला पड़ाव आया लंबी। सरपंच चुने जाने के कुछ समय बाद ही वे लंबी ब्लॉक समिति के प्रधान चुन लिए गए।

प्रकाश सिंह ने बादल की तरह लंबी को भी हमेशा के लिए अपने से जोड़ लिया। पहली बार 1957 से लेकर 2017 तक 10 बार पंजाब विधानसभा में उन्होंने लंबी का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन 94 साल की उम्र में आखिरी चुनाव के दौरान उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

सबसे कम उम्र के CM और सबसे लंबी सियासी पारी

सबसे युवा मुख्यमंत्री और सबसे अधिक उम्र में राजनीति को अलविदा कहने वाले दोनों उपलब्धियां प्रकाश सिंह बादल के नाम ही हैं। प्रकाश सिंह बादल पहली बार मार्च 1970 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने। महज 43 साल की उम्र में इस पद को संभालने वाले वह उस समय के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री थे। 1970 में उन्होंने भाजपा-अकाली दल की सरकार को उन्होंने तकरीबन सवा साल तक चलाया।

विधानसभा 2022 के चुनावों में 94 साल की उम्र में वह चुनावी मैदान में उतरे। उन्हें अपने राजनीतिक सफर की पहली हार इसी उम्र में मिली और उन्होंने राजनीतिक सफर को बीते साल ही अलविदा कह दिया था।

कैंसर से पत्नी की मृत्यु तो शुरू कर दी मुहिम

24 मई 2011 को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की पत्नी सुरिंदर कौर बादल का कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद PGI में निधन हो गया था। तब सुरिंदर कौर 72 साल की थी। सुरिंदर कौर गले के कैंसर से पीड़ित थीं। पत्नी के देहांत के बाद मुख्यमंत्री रहते हुए प्रकाश सिंह बादल ने कैंसर के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी। घर-घर में कैंसर के मरीजों की जांच करवाई गई थी।

इतना ही नहीं, सरकारी अस्पतालों में कैंसर के प्रति इलाज में तेजी पूर्व मुख्यमंत्री के कारण ही संभव हुई थी। सीएम रिलीफ फंड भी प्रकाश सिंह बादल ने शुरू करवाया था, जिसमें कैंसर के मरीजों की फाइल पास होने के बाद उन्हें आर्थिक मदद दी जाती थी।

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