आप विपक्ष में है और आपको मौजूदा सरकार की नीतियों कमियां नजर आ रहीं है तो आपको आईना दिखाने का बिल्कुल अधिकार है और यही लोकतंत्र की मजबूती का आधार भी है। मगर ये बातें संसद और देश के बाहर जब जाती है तो देश कमजोर होता है हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। विपक्ष होने के नाते अगर सरकार कोई गलती कर रही है तो मजबूत उदाहणों और साक्ष्यों के साथ समझाना चाहिए। नीतियों को मजबूत करने में हिस्सेदार बनना चाहिए।
नई दिल्ली भारतीय लोकतंत्र की ताकत उसकी विविधता और बहस की संस्कृति में निहित है, लेकिन यह तब चुनौतीपूर्ण हो जाती है जब राष्ट्रीय हितों से जुड़े गंभीर मुद्दों पर सस्ती राजनीति हावी हो जाए। बीते कुछ वर्षों में भारत की विदेश नीति, जो कभी सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच आम सहमति की मिसाल मानी जाती थी, अब राजनीतिक टकराव का अखाड़ा बनती जा रही है।
बता दें कि, कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों को मोदी सरकार की विदेश नीति रास नहीं आ रही है। यह कोई नई-अनोखी बात नहीं। ऐसा पहले भी होता रहा है, लेकिन पहले आमतौर पर उस पर आम सहमति कायम होती थी, क्योंकि माना जाता था कि विदेश नीति सत्तारूढ़ दल की की नहीं, देश की होती है। अतीत में इस मान्यता के कुछ अपवाद भी दिखे।
गौरतलब है कि, 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद उसकी विदेश नीति पर लेकर विपक्ष की आपत्तियां लगातार बढ़ती और तीखी होती गई हैं। पाकिस्तान और चीन पर मोदी सरकार की नीति पर तो कुछ ज्यादा ही सवाल उठे। जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किया गया तो देश-दुनिया में हलचल मची। एक समय कांग्रेस के ही नेता कहते थे कि यह अनुच्छेद घिसते-घिसते खत्म हो जाएगा, लेकिन मोदी सरकार ने जब उसे सचमुच खत्म कर दिया तो राहुल गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं ने ऐसे बयान दिए, जो पाकिस्तान को अच्छे लगे।
पहलगाम में बर्बर आतंकी हमले के बाद राहुल गांधी एवं अन्य विपक्षी नेताओं ने पर्यटकों की सुरक्षा में कमी के सही सवाल उठाकर कठिन वक्त में भारत सरकार के साथ खड़े होने का अच्छा संदेश दिया, लेकिन पाकिस्तान को सबक सिखाने वाले आपरेशन सिंदूर खत्म होते ही उनके सुर बदल गए। ये सुर पाकिस्तान में गूंजने लगे। आपरेशन सिंदूर के अचानक स्थगन और उसका श्रेय ट्रंप की ओर से लेने पर विपक्ष और अन्य अनेक ने उचित ही आपत्ति जताई।
उन्होंने गाजा संकट एवं ईरान-इजरायल युद्ध पर मोदी सरकार पर चुप रहने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अभी समय है। सरकार को अपनी नीति बदलनी चाहिए। फिर ईरान-इजरायल युद्ध में ट्रंप ने कूदकर भारत और पूरी दुनिया का संकट बढ़ाया। भारत सरकार ने रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह से इजरायल-ईरान जंग पर भी तटस्थ रहना तय किया। तटस्थता की यह नीति कई विपक्षी दलों को अच्छी नहीं लग रही। वाम दलों को तो बिल्कुल भी नहीं।