दयाराम डढ़िया की जीत की खबर अखबारों में चमक रही है।
“मिर्जापुर के डढ़िया के दयाराम ने ड्रीम इलेवन से तीन करोड़ रुपये जीत लिए” — इस पंक्ति को जैसे ही पढ़ते हैं, आंखें चमकती हैं, दिल तेज़ धड़कता है और दिमाग़ कल्पना के घोड़े दौड़ाने लगता है। एक आम आदमी, जो तहसील में मुंशी का काम करता है, अचानक करोड़पति बन जाए — यह खबर हर उस नौजवान को आकर्षित करती है जो ज़िंदगी की दौड़ में थक चुका है, जो बेरोजगारी, गरीबी और असुरक्षा से जूझ रहा है। लेकिन रुकिए, सोचिए — क्या यह केवल एक जीत है, या एक गहरे सामाजिक नुकसान की शुरुआत?
कहानी सिर्फ दयाराम की नहीं है, ये उस भूखे सपने की है जो ताश के पत्तों पर खड़ा है।
दयाराम ने ढाई साल पहले ड्रीम इलेवन पर टीम बनाना शुरू किया। वह पहले तहसील में एक वकील के मुंशी थे — यानी एक मेहनती, ईमानदार और संघर्षशील इंसान। लेकिन फिर उन्होंने एक और राह पकड़ी — फैंटेसी क्रिकेट की। वह ऐप जो हर गली-कूचे में युवाओं की नई लत बन चुकी है। इस ऐप ने एक तरफ उनके जीवन को बदला, लेकिन दूसरी ओर समाज में एक ऐसा संदेश दिया, जिसकी असल कीमत हम अभी नहीं समझ