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भोपाल। मध्य प्रदेश की सियासत में कांग्रेस के दो दिग्गज नेता एक बार फिर आपस में ही उलझते नजर आ रहे हैं। जी हां… कांग्रेस के दो दिग्गज- दिग्विजय सिंह और कमलनाथ! 2020 में कमलनाथ सरकार के धराशायी होने की गूंज अब तक थमी नहीं है, और दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर तीखे तीर चलाकर इस पुराने जख्म को फिर से कुरेद दिया है। दिग्विजय ने हाल ही में कमलनाथ को निशाना बनाते हुए कहा कि अगर ‘कमल’ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात मान ली होती, तो शायद सरकार बच जाती। जवाब में कमलनाथ ने भी चुप्पी तोड़ते हुए दिग्विजय को कटघरे में खड़ा कर दिया, और कहा- “सिंधिया को तो लगता था कि सरकार दिग्विजय चला रहे हैं, इसीलिए उन्होंने बगावत कर दी!”

दिग्विजय का ‘खुलासा’: कमलनाथ ने तोड़ा ‘डिनर डील’!

दिग्विजय सिंह, जिन्हें मप्र की राजनीति का ‘चाणक्य’ कहा जाता है, ने हाल ही में इंडिया टुडे के Tak चैनल के पॉडकास्ट में खुलासा किया कि 2020 में कमलनाथ सरकार का पतन कमलनाथ और सिंधिया के बीच ‘इगो क्लैश’ का नतीजा था। दिग्विजय ने बताया कि एक बड़े उद्योगपति (नाम गुप्त, सियासत में रहस्य तो बनता है!) के घर डिनर पार्टी में कमलनाथ और सिंधिया के बीच ग्वालियर-चंबल संभाग को लेकर कुछ मांगों पर सहमति बनी थी। दिग्विजय ने तो खुद मध्यस्थ बनकर दोनों की ‘विशलिस्ट’ पर दस्तखत तक करवाए थे। लेकिन कमलनाथ ने बाद में इस समझौते को ठेंगा दिखा दिया। नतीजा? सिंधिया ने बगावत का बिगुल बजा दिया, 22 विधायकों को साथ लिया और कांग्रेस की सरकार को 15 महीने में ही ‘बाय-बाय’ कह दिया। दिग्विजय का कहना है, “मैंने तो चेताया था, लेकिन कमलनाथ ने नहीं माना। मेरी और सिंधिया की कोई लड़ाई नहीं थी, ये तो कमलनाथ की जिद थी!”

कमलनाथ का पलटवार: “सिंधिया को लगा, दिग्गी ही बॉस हैं!

कमलनाथ भी कहां चुप रहने वाले थे? उन्होंने अपने X अकाउंट पर तुरंत पलटवार किया और सारा ठीकरा दिग्विजय पर फोड़ दिया। कमलनाथ ने लिखा, “पुरानी बातें उखाड़ने का कोई फायदा नहीं, लेकिन सच यही है कि सिंधिया को अपनी महत्वाकांक्षा के साथ-साथ ये गलतफहमी थी कि सरकार मैं नहीं, दिग्विजय सिंह चला रहे हैं। बस, इसी नाराजगी में उन्होंने विधायकों को तोड़ा और सरकार गिरा दी।” कमलनाथ का ये बयान सियासी गलियारों में तूफान ला गया। मतलब, कमलनाथ ने साफ कह दिया कि अगर दिग्विजय ‘बैकसीट ड्राइविंग’ न करते, तो शायद सिंधिया का गुस्सा ठंडा रहता और सरकार बच जाती।

सियासी ड्रामे की असल कहानी: 2020 का वो तूफानी दौर

2018 में कांग्रेस ने मप्र में 15 साल बाद सत्ता हासिल की थी। कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली, लेकिन पार्टी के अंदर खींचतान शुरू से ही थी। एक तरफ दिग्विजय सिंह का खेमा, दूसरी तरफ सिंधिया का प्रभाव। कमलनाथ इन दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में जुटे थे, लेकिन सिंधिया को लगता था कि उनकी अनदेखी हो रही है। ग्वालियर-चंबल में उनकी मांगों को तवज्जो नहीं मिली, और ऊपर से दिग्विजय का प्रभाव उन्हें खटकता था। मार्च 2020 में सिंधिया ने बगावत कर दी, 22 विधायकों को लेकर बीजेपी में चले गए, और कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आकर ढह गई।

अब कौन सही, कौन गलत?

दिग्विजय का कहना है कि वो तो बस मध्यस्थ थे, और कमलनाथ की जिद ने सरकार डुबो दी। वहीं, कमलनाथ का तर्क है कि दिग्विजय का ‘अति-उत्साह’ और उनकी छवि ने सिंधिया को बागी बनाया। सियासी पंडितों का कहना है कि ये दोनों दिग्गज अब पुरानी रंजिश को हवा देकर अपनी-अपनी साख बचाने की जुगत में हैं। लेकिन सवाल ये है- अगर दोनों इतने ही समझदार थे, तो सरकार को बचाने के लिए ‘डिनर डील’ को क्यों नहीं निभाया गया? या फिर ये सब बस कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी का नमूना है, जहां हर कोई दूसरे को ‘विलेन’ साबित करने में जुटा है?

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