संविधान में कुछ शब्दों को लेकर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री औऱ वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री का दिया बयान विपक्ष के निशाने पर है। उनका कहना है कि शिवराज सिंह चौहान के ये शब्द नहीं है ये बीजेपी की सोची समझी रणनीति है। क्या है पूरा मामला खबर को विस्तार से पढ़िए….
‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ पर शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारतीय संस्कृति किसी भी धर्म का अनादर करना नहीं सिखाती। समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष की भावना पहले से निहित है। ऐसे में संविधान में इन शब्दों की जरूरत नहीं है। शिवराज सिंह ने कहा कि इन दोनों शब्दों को संविधान से हटाने को लेकर विचार जरूर किया जाना चाहिए। शिवराज सिंह चौहान वाराणसी में आपातकाल की 50वीं बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस मौके पर उन्होंने 1975 में लगाए गए आपातकाल के दौरान अपने अनुभव साझा किए और साथ ही संविधान में किए गए संशोधनों की आलोचना भी की।
शिवराज सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति किसी भी धर्म का अनादर करना नहीं सिखाती। हम सभी को अपना मानने वाले लोग हैं और सभी को साथ लेकर चलने वाले समाज में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों का संविधान में होना जरूरी नहीं है।
गौरतलब हैं कि‘समाजवाद’ शब्द पर टिप्पणी करते हुए शिवराज सिंह ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक परंपरा में सभी को समान मानने की सोच पहले से ही रही है। उन्होंने उपनिषदों, वेदों और भगवद गीता के संदर्भों के जरिए बताया कि भारतीय समाज में वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे विचार सदियों से जीवित हैं।
आपातकाल की यादें पर भी बोले शिवराज सिंह
वही, कार्यक्रम के दौरान शिवराज सिंह ने 1975 की आपातकाल अवधि के अपने अनुभव भी साझा किए। उन्होंने बताया कि जब देश में प्रेस की स्वतंत्रता छीनी गई, नेताओं को जेलों में ठूंसा गया और लोकतंत्र को कुचला गया, तब वे सिर्फ 16 साल के थे। वह उस समय स्कूल में पढ़ते थे लेकिन उन्होंने साहस दिखाया और आपातकाल के खिलाफ पर्चे बांटे।
शिवराज ने यह भी कहा कि भारत में वास्तविक धर्मनिरपेक्षता आचरण से आती है, कानून से नहीं। उन्होंने उदाहरण दिया कि भारतीय जनमानस पहले से ही विविधता में एकता को मानता आया है। ऐसे में संविधान में ऐसे शब्दों को जबरन बनाए रखने की आवश्यकता नहीं है, जो मूल रूप से भारत की आत्मा से मेल नहीं खाते।