बीजेपी जब भी कोई पद पर किसी को बिठाती है उससे पहले खूब चर्चा भी होती है कई नाम ऐसे छाए रहते हैं जैसे लगता है इन्हीं में से किसी को बीजेपी फाइनल करने वाली है। मगर हमेंशा दाव उलटा पड़ जाता है जितने भी सियासी पंडित हैं सभी की भविष्यवाणी चित हो जाती है। क्योंकि बीजेपी वहां से सोचना शुरू करती है जहां पर सोचना बंद कर देते हैं।
अहमदाबाद। इसमें कोई गुरेज और हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर बीजेपी गुजरात की राजनीति में किसी अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को प्रदेश की कमान सौंप दें। क्योंकि सिर्फ गुजरात नहीं पूरे देश की राजनीति में बीजेपी एक बार फिर बदलते समीकरणों के दौर से गुजर रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर नई हलचल शुरू हो गई है। पार्टी के भीतर इस बार जोर-शोर से चर्चा है कि आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा आलाकमान प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए ओबीसी समुदाय से आने वाले नेता को मौका दे सकती है। माना जा रहा है कि भाजपा का यह कदम न केवल कांग्रेस की रणनीति को काउंटर करने के लिए होगा, बल्कि 2022 के विधानसभा चुनाव में हुए अनुभव से सीखकर 2027 के चुनाव में अधिक मेहनत करने का हिस्सा भी होगा।
कांग्रेस के ओबीसी व आदिवासी के जातीय समीकरण से मुकाबला करने के लिए भाजपा भी अध्यक्ष पद के लिए ओबीसी नेता के नाम पर अंतिम मुहर लगाने को तैयार है। यह मध्य गुजरात से होगा।
इसके अलावा केंद्र शासित प्रदेश में बतौर प्रशासक काम कर रहे एक पाटीदार नेता पर भी भाजपा आलाकमान की नजर है। उन्हें वापस गुजरात लाकर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। केंद्र में गए गुजरात भाजपा के दिग्गज अब पहले जितना समय नहीं दे पा रहे हैं।
कांग्रेस की चाल: अमित चावड़ा को फिर से कमान
इसी बीच, कांग्रेस आलाकमान ने भी अपना दांव खेलते हुए राज्य के विधायक अमित चावड़ा को एक बार फिर से प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। चावड़ा ओबीसी समुदाय से आते हैं और पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के रिश्तेदार हैं। उनके साथ ही, कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी के बेटे तुषार चौधरी को विधानसभा में विधायक दल का नेता नियुक्त किया है।
कांग्रेस का यह कदम साफ तौर पर ओबीसी और आदिवासी समुदाय के समीकरण को साधने की कोशिश है, जिसे भाजपा हल्के में नहीं ले सकती।
गुजरात में राजनीतिक रणनीति का बड़ा हिस्सा हमेशा से जातीय समीकरण पर आधारित रहा है। पाटीदार, ओबीसी, आदिवासी और दलित वोट बैंक हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कांग्रेस ने ओबीसी और आदिवासी पर दांव लगाया है, जबकि भाजपा अब पाटीदार और ओबीसी दोनों वर्गों को साधने की कोशिश में दिख रही है।सूत्रों के मुताबिक, भाजपा आलाकमान के पास कुछ नामों पर गंभीर विचार हो रहा है, जिनमें एक ओबीसी नेता का नाम सबसे आगे है।
बता दें कि, गुजरात की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी-अपनी रणनीतियों से चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। कांग्रेस ने जहां ओबीसी और आदिवासी नेताओं को आगे कर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है, वहीं भाजपा भी मध्य गुजरात से ओबीसी नेता को अध्यक्ष बनाकर इस चुनौती का सामना करने के मूड में है।
हालांकि सभी कयास मात्र हैं क्योंकि बीजेपी जो करने वाली होती है वो चंद लोगों को ही पता होता है। ऐसे में समाचार मिर्ची के पाठकों की भी प्रतिक्रिया हम जानना चाहते हैं कि आखिर बीजेपी की रणनीति के बारे में आप लोग क्या सोचते हैं। अपनी प्रतिक्रिया हमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या ऑफिशियल ईमेल आईडी samacharmirchi@gmail.com पर जरूर दें।