भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक टकराव ने नया मोड़ ले लिया है। भारत सरकार ने अमेरिकी डेयरी उत्पादों के आयात को सख्ती से अस्वीकार कर दिया है। यह फैसला केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। भारत का यह रुख 8 करोड़ से अधिक छोटे और सीमांत डेयरी किसानों की आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है, जिन्हें सस्ते अमेरिकी आयात से भारी नुकसान हो सकता था।
भारत सरकार ने कई बार स्पष्ट किया है कि वह “गैर-शाकाहारी दूध” के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं कर सकती. किसी भी सरकार के लिए इस मुद्दे पर झुकना राजनीतिक रूप से आत्मघाती होगा, क्योंकि इसे देश के मूल सांस्कृतिक मूल्यों के साथ धोखा माना जाएगा. यह सिर्फ एक व्यापारिक बाधा नहीं, बल्कि भारत के लिए एक “रेड लाइन” है, जिसे पार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
अमेरिका ने हाल ही में भारत से आने वाले सभी सामानों पर 25 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है, जो 7 अगस्त से लागू होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत पर दबाव बनाने की रणनीति है, ताकि वह अमेरिकी डेयरी उत्पादों के लिए अपना बाजार खोल दे। लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह मुद्दा केवल व्यापार का नहीं, बल्कि “आस्था और अस्तित्व” का है।
भारत सरकार का अमेरिकी डेयरी आयात पर सख्त रुख यह दर्शाता है कि आर्थिक हितों के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। यह फैसला करोड़ों किसानों के जीवन को सुरक्षित रखने के साथ-साथ भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक अस्मिता को भी बचाने का प्रयास है।