बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों की सुगबुगाहट तेज हो चुकी है। राजनीतिक गलियारों में उठापटक, बैठकों और संभावित गठबंधनों की चर्चाएं जोरों पर हैं। लेकिन इस बार सबसे ज्यादा चर्चा जिस मुद्दे की हो रही है, वह है दल-बदल (Party Switching) का बढ़ता सिलसिला।मुजफ्फरपुर से लेकर पटना तक, कई नेता अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए पार्टियां बदल रहे हैं। हालात यह हैं कि जनता के बीच “आया राम, गया राम” वाली कहावत फिर से चर्चा में है।
आम जनता चुपचाप इस आया राम, गया राम वाला खेल देख रही है। जिले में विभिन्न राजनीतिक दलों के अब तक करीब एक दर्जन नेता अपना पाला बदल चुके हैं। इसमें दिग्गज नेता अजय निषाद, गणेश भारती, अनिल सहनी, अजीत कुमार, बेबी कुमारी, कोमल सिंह, अजय कुशवाहा, रामकुमार सिंह और विनायक गौतम शामिल हैं।
मुजफ्फरपुर बना दल-बदल का केंद्र
मुजफ्फरपुर जिला इस समय बिहार की राजनीति में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है। यहां के कई बड़े और छोटे नेताओं ने चुनाव से पहले अपनी-अपनी राजनीतिक दिशा बदल ली है। इनमें प्रमुख नाम हैं — अजय निषाद, गणेश भारती, अनिल सहनी, अजीत कुमार, बेबी कुमारी, कोमल सिंह, अजय कुशवाहा, रामकुमार सिंह और विनायक गौतम। किसी ने अपनी पुरानी पार्टी में “घर वापसी” की है, तो कोई नए मंच पर किस्मत आजमाने को तैयार है।
मुजफ्फरपुर के दिग्गज नेता अजय निषाद, जो कभी भाजपा के मजबूत स्तंभ माने जाते थे, हाल ही में फिर से चर्चा में हैं। बताया जा रहा है कि वे अब एक नए राजनीतिक समीकरण की तलाश में हैं।अजय निषाद का क्षेत्र में प्रभाव काफी गहरा है, और उनके कदम का असर मुजफ्फरपुर की कई सीटों पर पड़ सकता है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि अजय निषाद जैसे नेताओं के दल बदलने से स्थानीय समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं।
जेडीयू, राजद और भाजपा में हलचल
तीनों प्रमुख दल — जेडीयू, राजद और भाजपा — इस समय अपने संगठन को मजबूत करने और योग्य उम्मीदवारों की तलाश में जुटे हैं।जेडीयू में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रणनीति साफ है: पार्टी में पुराने चेहरों की वापसी और युवाओं को टिकट देने की योजना।
वहीं तेजस्वी यादव की राजद इस बार न सिर्फ अपने पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है, बल्कि कुछ नए वर्गों को भी आकर्षित करने की कोशिश कर रही है। भाजपा भी अपने पुराने गढ़ों को बचाने और नए उम्मीदवारों के साथ नई ऊर्जा दिखाने की कोशिश में है।
