राज्य में पहले चरण के चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दलों ने अपने वोट बैंक को साधने की रणनीति तेज कर दी है। विशेष रूप से मुस्लिम मतदाताओं को लेकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और जनता दल (यूनाइटेड) [JDU] के बीच बयानबाजी और सियासी दांवपेंच तेज हो गए हैं।
नीतीश कुमार एडवाइजरी के अंदाज में मुस्लिम समाज को यह भी कह रहे कि उनकी सरकार ने उनके समाज के लिए काम किया है उसे याद रखिए और बता दें कि बिहार में मुस्लिमों की आबादी लगभग 17.7 प्रतिशत है। यह आबादी बिहार के 50 से 70 विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव में निर्णायक भूमिका है। सीमांचल के जिले मसलन किशनगंज, कटिहार, अररिया व पूर्णिया जिले में मुस्लिम वोटराें की संख्या 40 प्रतिशत तक है।
किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 44, अररिया में 43 और पूर्णिया में 39 प्रचिशत मुस्लिम आबादी है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में 19 मुस्लिम विधायक चुने गए जो कुल विधायकों का आठ प्रतिशत है।उसके आधार पर तय कीजिए कि वोट किसे देना है।य कमेटी के गठन का सुझाव दिया था। जदयू की सलाह पर संयुक्त संसदीय कमेटी का गठन भी किया गया। जब यह बिल पास हुआ तो जदयू के संशोधन को केंद्र में रख गया। कानून तो कानून है उसे कोई उसे डस्टबीन में कैसे फेंक सकता है।
तेजस्वी यादव का वक्फ कानून पर बड़ा दांव
राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने चुनाव प्रचार में वक्फ कानून (Waqf Act Amendment) को बड़ा मुद्दा बनाया है।
उन्होंने कई रैलियों में कहा कि,
“अगर हमारी सरकार बनी, तो हम इस संशोधन को डस्टबिन में फेंक देंगे।”
उनका कहना है कि इस संशोधन से वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और मुस्लिम धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा। तेजस्वी इस मुद्दे को मुस्लिम मतदाताओं के भावनात्मक जुड़ाव से जोड़कर देख रहे हैं।
वहीं, राजद का यह भी दावा है कि 2020 में गठबंधन सरकार के दौरान अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के बजट और योजनाओं में तेजी आई थी, लेकिन नीतीश सरकार आने के बाद इन योजनाओं पर अमल कमजोर हुआ है।
सीमांचल: बिहार की राजनीति का बैरोमीटर
बिहार की राजनीति में सीमांचल क्षेत्र की भूमिका ऐतिहासिक रही है। यहां की सामाजिक बनावट, धार्मिक विविधता और सीमावर्ती भौगोलिक स्थिति इसे सियासी रूप से खास बनाती है।
यहां मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संयुक्त आबादी लगभग 55% है। यही वजह है कि राजद का पारंपरिक आधार यहां मजबूत रहा है, जबकि जदयू विकास और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर अपनी जगह बनाने की कोशिश करता रहा है।
2020 के विधानसभा चुनाव में 19 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, जो कुल विधायकों का करीब 8 प्रतिशत है। यह बताता है कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व में सुधार तो हुआ है, पर अभी भी यह समुदाय सत्ता के केंद्र तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाया है।
वोटों का गणित: NDA बनाम महागठबंधन
राज्य में महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-लेफ्ट) और एनडीए (JDU-BJP-LJP faction) के बीच मुकाबला सीधा है।
तेजस्वी यादव मुस्लिम और यादव (MY) समीकरण को मजबूत करने में जुटे हैं, वहीं नीतीश कुमार की जदयू पिछड़े वर्गों, महिलाओं और अति पिछड़ों को साधने में लगी है।
नीतीश का यह कहना कि “हमने मुस्लिम समाज को रोजगार, शिक्षा और सुरक्षा में बराबरी दी,” उनके शासन मॉडल का हिस्सा है। वहीं, तेजस्वी इस तर्क के खिलाफ यह कहते हैं कि “नीतीश कुमार अब भाजपा के साथ हैं, जो मुसलमानों के हितों के खिलाफ नीतियां बनाती है।”
यह आरोप-प्रत्यारोप सीमांचल में एक बार फिर वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना को बढ़ा रहा है।
