पटना — बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के अंतिम चरण से पहले प्रदेश में चुनावी गरमाहट चरम पर है। पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर को निर्धारित होने के साथ आज कई बड़े केंद्रीय और राजकीय नेता जनसभाएं कर रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने रविवार को सीतामढ़ी जिले के बेलसंड में आयोजित रैली में कई बड़े वादे और घोषणाएँ कीं — जिनमें सबसे प्रमुख वादा यह था कि अगर एनडीए की सरकार बनी तो पाँच वर्षों के भीतर बिहार को स्थायी रूप से बाढ़ मुक्त बनाया जाएगा।
आए दिन पाकिस्तान के आतंकवादी भारत में घुस जाते थे लेकिन कांग्रेस के लोग जवाब नहीं देते थे। पहलगाम हमले का बदला ऑपरेशन सिंदूर करके मोदी जी ने लिया। पाकिस्तान से गोली चलेगी तो उसका जवाब यहां से गोला चला कर दिया जाएगा। डिफेंस कॉरीडोर बनने के बाद यह गोला बिहार से बनेगा। उन्होंने कहा कि पांच साल में कमीशन बनाकर बाढ़ मुक्त बिहार बनाएंगे। बटन इतनी जोर से दबाना की बटन यहां तब है लेकिन उसका करंट इटली तक पहुंचे।
समारोह और चुनावी पृष्ठभूमि — बिहार के कई हिस्सों में आज सिर्फ अमित शाह ही नहीं, बल्कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी जनसभाओं में उपस्थित थे। सभी पार्टियां पहले चरण से पहले अपनी-अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप दे रही हैं, उम्मीदवारों की सक्रियता बढ़ी हुई है और हर दल जीत के दावे कर रहा है। चुनाव प्रचार के इस अंतिम पड़ाव में विकास-अर्जन (development narrative) और सुरक्षा-संदेश (security narrative) दोनों ही केंद्र में दिख रहे हैं —
अंततः चुनावी मैदान में ऐसे वादों और घोषणाओं का असली मूल्य तभी नापेगा जब वोटिंग के बाद उन वादों को नीति और नकद बजट में बदला जाएगा। 6 नवंबर की वोटिंग और उसके बाद आने वाले नतीजे यह तय करेंगे कि इन दावों को लागू करने का राजनीतिक प्लेटफार्म किसके हाथ में होगा। फिलहाल सीतामढ़ी की रैली ने चुनावी गर्माहट और तेजी से बदलते राजनीतिक संवाद को और तेज कर दिया है — जहाँ विकास, सुरक्षा और रोज़गार तीनों ही मुद्दे बराबर जोर से सुनाई दे रहे हैं।
विकास और वादों पर विपक्ष की प्रतिक्रिया पहले से नर्म नहीं रही। राजद और कांग्रेस के नेताओं ने अमित शाह के बाढ़ मुक्ति वादों पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि पिछली सरकारों के दौरान बाढ़ नियंत्रण के मुद्दे पर जो काम होने चाहिए थे, वे टाले गए या अधूरे रहे। विपक्षी नेताओं ने यह भी तंज किया कि “पांच साल में सब कुछ बदलने” जैसा वादा सरल नहीं है,
