टीवी -9 भारतवर्ष के पत्रकार अक्षय विनोद शुक्ला जी ने चुनावी कवरेज के दौरान लोगों से बातचीत के दौरान अपने अनुभव के आधार चुनाव का विश्लेषण किया है। जिसमें एक सटिकता दिखती है कोई पक्षपात नहीं दिखता है लेकिन हकिकत तो खैर 14 नवंबर को ही सामने आएगी। लेकिन आप भी पढ़िए ग्राउंड जीरो पर क्या स्थिति है।
बिहार में 17 दिन में अलग अलग जगहों के लोगों से मिलना हुआ । मुंबई-दिल्ली की तरह यहाँ भी कोशिश यही थी की कैमरा ऑन हो या ऑफ ज़्यादा से ज़्यादा आम लोगों से बात कर सकूँ । मुझे ये तरीका अनुमान लगाने के लिए सबसे सही और कारगर लगता है । उस आधार पर अपना अनुभव साझा कर रहा हूँ । सही हो या ग़लत सहर्ष स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं होगी
- क़रीब 10 ज़िलों की विभिन्न सीटों पर घूम कर लगा की अगर यही तस्वीर पूरे बिहार की है तो एक बार फिर से NDA की सरकार बनेगी । सीट 140-160 तक हो सकती हैं । ये 160 से ज़्यादा भी हो जाए तो आश्चर्य की बात नहीं ।
- जनसुराज का सूरज जितना इंटरनेट पर है ज़मीन पर उसका 1% असर भी नहीं दिख रहा है । दिल्ली से जाते समय ये लग रहा था- जनसुराज किंगमेकर बन सकती है! बिहार पहुँच कर लगने लगा की ये वोट कटुआ से बढ़कर कुछ दिख नहीं रही है । NDA के वोट में सेंधमारी है लेकिन उतनी नहीं की सीट जीत सके । कम अंतर वाली एक- दो सीट पर इसकी वजह से महागठबंधन को फायदा मिल सकता है लेकिन इसकी गुंजाइश बहुत कम है । (जनसुराज 0-2; वैसे खाता खुलना उपलब्धि होगी )
- नीतीश कुमार CM के तौर पर पहली पसंद आज भी हैं । महिलाओं में सबसे ज़्यादा क्रेज़ है और ये जिताऊ फैक्टर है जो महाराष्ट्र – मध्यप्रदेश में दिख चुका है । विरोध करने वालों में भी स्वीकारोत्ती है की नीतीश ने काम किया है , नीतीश की तुलना नीतीश के ही पहले 10 साल के कार्यकाल से होती है । किसी दूसरे से तुलना में बाज़ी नीतीश के ही पाले में है ।
- जिन सीटों पर जाना हुआ उनमे अलीनगर सबसे ज़्यादा फँसी सीट है । RJD की तरफ़ से विनोद मिश्रा का मैदान में होना मैथली की लोकप्रियता पर भारी पड़ सकता है । मिश्रा जी अनुभवी हैं, गाँव के ही हैं और ब्राह्मण हैं ये तीनों फैक्टर उनको भारी कर रहा है । मैथिली पर महिलाएँ और युवा कितना भरोसा जताते हैं ये रिजल्ट में दिखेगा। पलड़ा मिश्रा जी का भारी दिखा ।
- छपरा , दूसरी फँसी सीट है जहाँ राखी गुप्ता का निर्दलीय खड़ा होना बीजेपी की छोटी कुमारी के लिए सरदर्द बना रहा । सामने खेसारी लाल जैसा पॉपुलर चेहरा होना इस सीट पर लड़ाई त्रिकोणीय बना रहा है । लेकिन सीट के इतिहास को देखा जाए तो पहले भी बीजेपी से अलग चुनाव लड़ने वालों को ज़्यादा फ़ायदा मिला नहीं है । इस आधार पर छोटी कुमारी को उनके समर्थक जिता रहे हैं ।
- झँझारपुर पर जनसुराज का झंडा थामे सबसे ज़्यादा युवा नज़र आए लेकिन बीजेपी के मंत्री नीतीश मिश्रा अपने दम पर यहाँ बिना किसी स्तर प्रचारक के जीत का दावा कर रहे हैं । इसकी वजह है पिछले चुनाव में जीत का अंतर ! उद्योग मंत्री की सीट पर उद्योग ना होना मुद्दा है फिर भी नीतीश मिश्रा को यहाँ हराना मुश्किल है (जनसुराज यहाँ वोट काट भी ले तब भी) ।
बाक़ी सीटों की बात बाद में करते हैं 🙂
लेखक- अक्षय विनोद शुक्ला – पत्रकार -टीवी9 भारतवर्ष
