पटना बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने पूरे राजनीतिक परिदृश्य को चौंका दिया है। एनडीए ने बेहद मजबूत और लगभग एकतरफा प्रदर्शन करते हुए भारी बहुमत हासिल किया। वहीं महागठबंधन पूरी तरह बिखरा हुआ नज़र आया। कई बड़े चेहरे हार की गिनती में चले गए, जबकि कुछ नए नामों ने इतिहास रच दिया। सबसे अधिक चर्चा भोजपुरी स्टार खेसारी लाल यादव की हार और युवा गायिका मैथिली ठाकुर की रिकॉर्ड जीत को लेकर रही। इसके अलावा,
बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की, जिसमें कई दिग्गज हार गए। महागठबंधन को करारी शिकस्त मिली। खेसारी लाल यादव जैसे चर्चित चेहरे हारे, वहीं मैथिली ठाकुर ने रिकॉर्ड बनाया। एनडीए की जीत के पीछे महिला रोजगार योजना और पेंशन वृद्धि जैसे कई कारण रहे, जबकि महागठबंधन नेतृत्व की कमी और कमजोर संगठन के कारण विफल रहा। एनडीए ने चुनाव से पहले वृद्धावस्था, विधवा और दिव्यांग पेंशन योजनाओं में वृद्धि का ऐलान किया था। इसका लाभ बड़े पैमाने पर बुजुर्गों और सामाजिक सुरक्षा पर निर्भर परिवारों को मिला।
चुनाव के 4 बड़े रिकॉर्ड
चुनाव परिणामों में चार बड़े रिकॉर्ड दर्ज हुए, जो पूरे बिहार में चर्चा का विषय बने रहें।
1. सबसे बड़ी जीत — 73,572 मतों से ऐतिहासिक जीत
रुपौली सीट पर जेडीयू के कलाधर मंडल ने बीमा भारती को 73,572 मतों के भारी अंतर से हराया। यह इस चुनाव की सबसे बड़ी जीत है और जेडीयू के लिए मनोबल बढ़ाने वाली उपलब्धि भी।
2. सबसे छोटी जीत — मात्र 27 वोटों से फैसला
आरा जिले की संदेश सीट पर जेडीयू के राधाचरण साह ने सिर्फ 27 वोटों से जीत दर्ज की। यह अंतर इस चुनाव में प्रतिस्पर्धा की तीव्रता को दर्शाता है।
3. सबसे कम उम्र की विधायक — 25 वर्षीय मैथिली ठाकुर
अलीनगर सीट से जीतकर मैथिली ठाकुर बिहार की सबसे युवाओं में शामिल विधायकों में सबसे कम उम्र (25 वर्ष) की निर्वाचित विधायक बनीं। लोकगीत गायन से लोकप्रियता हासिल करने वाली मैथिली की जीत में युवा और महिला वोटरों का बड़ा योगदान माना जा रहा है।
बता दें कि, बिहार चुनाव 2025 एनडीए के लिए एक ऐतिहासिक अध्याय के रूप में दर्ज हो रहा है। पाँच रणनीतिक मंत्रों ने पार्टी को निर्णायक बढ़त दिलाई—महिला वोटरों का समर्थन, पेंशन योजनाओं की मजबूती, विपक्ष की कमजोर तैयारी, डिजिटल कैंपेन, और जातीय समीकरणों का कुशल प्रबंधन। वहीं चार बड़े रिकॉर्डों ने इस चुनाव को और अधिक रोचक बना दिया। खेसारी लाल यादव की हार और मैथिली ठाकुर की जीत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि बिहार की राजनीति अब तेजी से बदल रही है — यहां लोकप्रियता से ज्यादा मायने रखती है विश्वसनीयता, जमीनी काम और विकास की राह।
