दिल्ली। आंध्र प्रदेश के घने जंगलों में आज सुबह हुई मुठभेड़ में छह नक्सली मारे गए। और इनमें सबसे बड़ा नाम—मदवी हिड़मा। हां, वही हिड़मा, जिसके नाम पर दर्जनों हमलों का साया मंडराता था। दरअसल 18 नवंबर 2025 को, आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामा राजू जिले के मारेड़ुमिल्ली जंगल में सिक्योरिटी फोर्सेस ने एक बड़ा ऑपरेशन चलाया। इंटेलिजेंस इनपुट्स के आधार पर ग्रेहाउंड्स कमांडो और लोकल पुलिस ने चत्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर के पास माओवादियों को घेर लिया। मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर हो गए—इनमें मदवी हिड़मा, उनकी दूसरी पत्नी मदकम रजे उर्फ राजक्का, और चार अन्य। हिड़मा की उम्र बताई जा रही है 43 साल, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में 51। खैर, उम्र से ज्यादा महत्वपूर्ण है उनका रुतबा। वह सीपीआई (माओइस्ट) की सेंट्रल कमिटी का सबसे युवा सदस्य था, पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी—बैटालियन नंबर 1—का चीफ। उसके उपर 50 लाख से एक करोड़ तक का इनाम था।
अब सोचिए, हिड़मा कौन था? बस एक नक्सली लीडर? नहीं, वह तो दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमिटी का सरदार था, जिसके इशारे पर जंगल हिल जाते थे। उसके नाम पर कम से कम 26 घातक हमले दर्ज हैं। 2010 का दंतेवाड़ा हमला—जिसमें 76 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए। 2013 का झिरम घाटी नरसंहार—27 लोग मारे गए, जिनमें महाराष्ट्र कांग्रेस के बड़े नेता शामिल थे। और 2021 का सुकमा-बीजापुर हमला—22 सिक्योरिटी पर्सनल की जान चली गई। ये आंकड़े हैं, लेकिन इनके पीछे क्या था? आदिवासी इलाकों में खनन की होड़, विस्थापन की त्रासदी, और विकास के नाम पर लूट। हिड़मा खुद बस्तर का आदिवासी था—गोंड जनजाति से। क्या वह विद्रोही था, या फिर व्यवस्था का शिकार?
गृह मंत्री अमित शाह ने सिक्योरिटी फोर्सेस को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह ऑपरेशन नक्सलवाद के खिलाफ केंद्र सरकार की रणनीति का हिस्सा है। याद कीजिए, शाह ने हाल ही में 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने का लक्ष्य रखा था। लेकिन 30 नवंबर तक ही हिड़मा को मार गिराने का वादा किया गया था—और देखिए, वादा पूरा। जंगल वारफेयर कॉलेज स्थापित करने की बातें हो रही हैं, सैंक्चुअरी की सीमाएं बदलने की योजना।
छत्तीसगढ़ में सुकमा के जंगलों में आज भी छिटपुट फायरिंग की खबरें आ रही हैं—तीन नक्सली और मारे गए। लेकिन सवाल वही—कितने और हिड़मा छिपे हैं उन जंगलों में? सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर तो हंगामा मच गया है। ब्रेकिंग न्यूज के साथ वीडियो शेयर हो रहे हैं—सिक्योरिटी फोर्सेस की जीत की तस्वीरें, हिड़मा के पोस्टर्स। कोई कह रहा है, “माओवाद का अंत नजदीक है।” कोई पूछ रहा है, “अब अगला टारगेट कौन?” लेकिन सोशल मीडिया की चमक में खोकर हम भूल जाते हैं कि नक्सलवाद कोई रातोंरात उगा पौधा नहीं। 1967 का नक्सलबाड़ी से शुरू होकर, आज यह 90 जिलों तक फैला है। हिड़मा की मां ने हाल ही में सरेंडर की अपील की थी—मगर उसने अपनी मां की भी नहीं मानी और आखिरकार मुठभेड़ में मारा गया।
