बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, राज्य की राजनीति में सरगर्मी बढ़ती जा रही है। महागठबंधन (Grand Alliance) के भीतर सीट बंटवारे और प्रचार रणनीति को लेकर चल रही असहमति के बीच अब कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मैदान में उतारा है। गहलोत मंगलवार देर शाम पटना पहुंचे, जहां उन्होंने नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव से एक बंद कमरे में लंबी बैठक की। माना जा रहा है कि यह बैठक महागठबंधन के अंदर चल रही “गांठ” सुलझाने के लिए हुई है।
महागठबंधन में सीट बंटवारे पर बढ़ी खींचतान
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर अब भी पूरी स्पष्टता नहीं आई है। राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वामपंथी दल और अन्य सहयोगियों के बीच सीटों की संख्या और चुनावी रणनीति को लेकर मतभेद लगातार सामने आ रहे थे।
कांग्रेस चाहती थी कि उसे पिछली बार से अधिक सीटें मिलें, जबकि आरजेडी का दावा था कि उसे मुख्य दल होने के नाते बड़ा हिस्सा मिलना चाहिए। यही वजह थी कि साझा घोषणापत्र और चुनाव प्रचार की रूपरेखा पर भी सस्पेंस बना हुआ था।
पटना पहुंचने के तुरंत बाद अशोक गहलोत ने सीधे तेजस्वी यादव के साथ बैठक की। सूत्रों के अनुसार यह बैठक करीब डेढ़ घंटे तक चली, जिसमें सीट बंटवारे, प्रचार रणनीति और साझा घोषणा पत्र को लेकर विस्तार से चर्चा हुई। बैठक में दोनों नेताओं ने सहमति जताई कि विपक्षी एकता बनाए रखना इस चुनाव में सबसे जरूरी है। गहलोत ने इस दौरान कांग्रेस आलाकमान का संदेश भी तेजस्वी तक पहुंचाया। उन्होंने कहा कि “कांग्रेस और आरजेडी के रिश्ते दशकों पुराने हैं और इस बार का चुनाव सिर्फ बिहार का नहीं, बल्कि पूरे देश में विपक्षी एकता की परीक्षा है।”
बता दें कि, बैठक के बाद गहलोत ने मीडिया से बातचीत में कहा कि महागठबंधन में कोई मतभेद नहीं है। “हम सब मिलकर चुनाव लड़ेंगे और अगले एक-दो दिन में सभी भ्रम और कन्फ्यूजन दूर कर दिए जाएंगे। महागठबंधन पूरी तरह से एकजुट है।”
गहलोत ने कहा कि “तेजस्वी यादव युवा और ऊर्जावान नेता हैं। वे बिहार की जनता की आकांक्षाओं को बखूबी समझते हैं। हमारा मकसद है कि जनता के मुद्दों को केंद्र में रखते हुए एक मजबूत विकल्प दिया जाए।”
जानकारी के मुताबिक बैठक में सीट बंटवारे के अलावा प्रचार अभियान की रूपरेखा पर भी चर्चा की गई। कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की बिहार में कई संयुक्त रैलियां हों। वहीं, आरजेडी चाहती है कि प्रचार अभियान स्थानीय मुद्दों जैसे बेरोजगारी, कृषि, शिक्षा और भ्रष्टाचार पर केंद्रित रहे। दोनों दलों के बीच यह तय हुआ कि जल्द ही साझा घोषणापत्र जारी किया जाएगा, जिसमें युवाओं, किसानों, महिलाओं और पिछड़े वर्गों के लिए विशेष योजनाओं की घोषणा की जाएगी।
महागठबंधन के लिए “करो या मरो” की स्थिति
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पहले चरण के चुनाव में ही महागठबंधन का भविष्य काफी हद तक तय हो जाएगा। अगर आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन शुरुआती चरण में बेहतर प्रदर्शन करता है, तो यह पूरे चुनाव अभियान को गति दे सकता है। लेकिन यदि असहमति और भ्रम जारी रहे, तो इसका सीधा फायदा एनडीए को मिलेगा।
इसीलिए गहलोत की यह यात्रा विपक्षी एकता को मजबूती देने के लिहाज से अहम मानी जा रही है।
बता दें कि, बिहार चुनाव 2025 का पहला चरण सिर्फ एक राजनीतिक परीक्षा नहीं, बल्कि विपक्षी गठबंधन की एकजुटता का भी इम्तिहान है। अशोक गहलोत की मध्यस्थता से उम्मीद जताई जा रही है कि कांग्रेस और आरजेडी के बीच तालमेल मजबूत होगा और साझा रणनीति तय की जाएगी। अब देखना यह है कि क्या गहलोत वाकई महागठबंधन की “गांठ” सुलझा पाएंगे या फिर बिहार की राजनीति में मतभेदों की ये डोर और उलझती जाएगी।