पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर सकरा विधानसभा सीट पर राजनीतिक सरगर्मी तेज है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जद(यू)) के लिए यह सीट इस बार चुनौतीपूर्ण बन गई है। यह सीट अपने मतदाताओं के बदलते रुझानों और नए चेहरों को प्राथमिकता देने के कारण राजनीतिक दृष्टि से हमेशा ही दिलचस्प रही है।
राष्ट्रीय पार्टी होने के बाद भी भाजपा यहां से कभी नहीं जीत पाई। हालांकि एनडीए के उम्मीदवार के रूप में जदयू के उम्मीदवार ने जरूर जीत हासिल की।
वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू के एनडीए गठबंधन से अलग होकर राजद के साथ चले जाने पर भाजपा ने पहली बार यहां से अर्जुन राम को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वह राजद के लालबाबू राम से हार गए। वहीं कांग्रेस यहां से अंतिम 1980 में जीत हासिल की थी तब कांग्रेस उम्मीदवार फकीर चंद्र राम ने जेएनपी एससी के पनटन राम को पराजित किया था। उसके बाद कांग्रेस यहां से कभी जीत हासिल नहीं कर सकी।
सकरा विधानसभा क्षेत्र का भूगोल और मतदाता संरचना
सकरा विधानसभा क्षेत्र में सकरा एवं मुरौल प्रखंड की कुल 37 पंचायतें शामिल हैं। इस क्षेत्र में लगभग 2.71 लाख मतदाता हैं, जिनमें पुरुष मतदाता 1.43 लाख और महिला मतदाता 1.27 लाख हैं। क्षेत्र के मतदाता किसी भी उम्मीदवार को लंबे समय तक कुर्सी पर टिकने नहीं देते, जिससे यहां चुनावी मुकाबले हमेशा रोमांचक रहते हैं।
राजनीतिक समीकरण और चुनौती
वर्ष 2015 में जद(यू) ने एनडीए से अलग होकर राजद के साथ गठबंधन किया था। उस चुनाव में भाजपा ने पहली बार यहां से अर्जुन राम को उम्मीदवार बनाया, लेकिन उन्हें राजद के लालबाबू राम से हार का सामना करना पड़ा। कुल मिलाकर, सकरा सीट पर राजनीतिक समीकरण बदलते रहते हैं और विपक्षी दल जद(यू) की कमजोर स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। यह सीट अपने मतदाताओं के निर्णायक रवैये और नए चेहरों को चुनने की प्रवृत्ति के कारण हमेशा ही किसी भी उम्मीदवार और दल के लिए चुनौतीपूर्ण रही है।
कांग्रेस और जद(यू) की स्थिति
कांग्रेस ने सकरा विधानसभा सीट पर अंतिम बार 1980 में जीत हासिल की थी, जब फकीर चंद्र राम ने जेएनपी एससी के पनटन राम को हराया था। उसके बाद कांग्रेस यहां कभी जीत नहीं पाई।
जद(यू) की स्थिति भी इस सीट पर हमेशा चुनौतीपूर्ण रही है। हालांकि पार्टी ने एनडीए गठबंधन के माध्यम से कई बार जीत हासिल की, लेकिन यह जीत कभी स्थायी नहीं रही।
बता दें कि, सकरा विधानसभा सीट हमेशा ही बिहार की राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है। जनता का बदलता रूझान, दलों की रणनीतियाँ और उम्मीदवारों की छवि इस सीट के चुनाव को रोमांचक और चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। इस बार भी जद(यू) के लिए यह सीट चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है। विपक्षी दलों की सक्रियता और जनता के नए चेहरे चुनने की प्रवृत्ति इस चुनाव को और भी रोचक बनाती है।