बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब अपने अंतिम चरण में है, और पूरा राज्य परिणामों का इंतजार कर रहा है। इस बार का चुनाव न केवल राजनीतिक दलों के लिए बल्कि जनता के लिए भी उम्मीदों का बड़ा मंच बन गया है। एक ओर महागठबंधन ने नौकरी, सामाजिक न्याय और कल्याणकारी योजनाओं के वादों की झड़ी लगाई, वहीं एनडीए ने ‘जंगलराज’ की याद दिलाकर कानून-व्यवस्था और विकास को चुनावी मुद्दा बनाया।
व्यवस्था में बदलाव की प्रतिबद्धता जताते हुए महागठबंधन ने हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया। युवाओं को आकर्षित करने का उसका यह दांव जोर पकड़ता कि उससे पहले ही एनडीए ने जंगलराज की मद्धिम पड़ चुकी स्मृतियों को चटख कर दिया। इस बार जुबानी जंग के बीच दावे और वादे घोषणा-पत्र से भी आगे बढ़ गए।
मुफ्त वादों की बारिश – जनता पर वादों का सैलाब
इस बार बिहार में मुफ्त वादों की बौछार ऐसी थी कि मानो चुनावी घोषणापत्र किसी बजट से कम न हो। महागठबंधन ने हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया, जिससे बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं में उत्साह दिखा। वहीं, महिलाओं के लिए भत्ता बढ़ाने और किसान कर्ज माफी जैसे वादे भी किए गए।
दूसरी ओर एनडीए ने मुफ्त वादों पर व्यावहारिक सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि “फ्री की राजनीति बिहार को फिर से पीछे धकेल सकती है।” बीजेपी और जेडीयू नेताओं ने बार-बार कहा कि “विकास का मतलब है अवसर देना, निर्भरता नहीं बढ़ाना।”
एनडीए का जोर – ‘विकास’ और ‘सुरक्षा’
एनडीए ने अपने चुनावी अभियान में विकास कार्यों की झड़ी लगाई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में किए गए सड़कों, बिजली, जल जीवन मिशन और महिला सशक्तिकरण के कामों को जनता के सामने रखा।
बीजेपी ने केंद्र की योजनाओं जैसे पीएम आवास योजना, उज्ज्वला, पीएम किसान और डिजिटल इंडिया का हवाला देते हुए कहा कि “विकास सिर्फ वादा नहीं, यह एनडीए का इतिहास है।”
बता दें कि, 2025 का यह चुनाव बिहार की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत कर सकता है। ‘जंगलराज बनाम विकास’, ‘वादे बनाम विश्वास’, और ‘मुफ्त योजनाएं बनाम आत्मनिर्भरता’ की इस लड़ाई में जनता ने लोकतंत्र की असली ताकत दिखाई है।अब देखना यह है कि मतदाताओं का फैसला किसके पक्ष में जाता है — रोजगार और कल्याण का वादा करने वाले महागठबंधन के या विकास और सुरक्षा का दावा करने वाले एनडीए के।
