बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर मची खींचतान और असहमति ने दरभंगा जिले की गौरा बौराम सीट पर एक अजीबोगरीब स्थिति पैदा कर दी है। दरअसल, राजद के नेता तेजस्वी यादव को इस सीट पर अपने ही पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार करना पड़ेगा। यह अनोखी स्थिति तब बनी जब राजद उम्मीदवार अफजल अली खान ने वीआईपी उम्मीदवार के लिए सीट छोड़ने से इनकार कर दिया।
घर पहुंचने से पहले ही बदल गया फैसला
इसके बाद, अफजल खुश होकर अपने चुनाव क्षेत्र के लिए रवाना हो गए, जो पटना से लगभग चार घंटे की यात्रा थी और अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करने के लिए उत्सुक थे। उनके घर पहुंचने तक, राजद और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के बीच समझौता हो गया, जिसके बाद गौरा बौराम सीट वीआईपी के खाते में जाएगी और महागठबंधन के सभी सहयोगी उसके उम्मीदवार संतोष सहनी का समर्थन करेंगे।
अफजल अली का भ्रम और तेजस्वी का प्रचार
अफजल अली खान जब चुनाव क्षेत्र की ओर रवाना हुए, तो वे काफी उत्साहित थे। पटना से गौरा बौराम तक की यात्रा लगभग चार घंटे की है और अफजल अपने प्रचार अभियान की शुरुआत करने को तैयार थे।
लेकिन घर पहुंचने से पहले ही स्थिति बदल गई। राजद और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के बीच समझौता हो गया। इसके तहत गौरा बौराम सीट वीआईपी उम्मीदवार संतोष सहनी को दी जाने लगी। अब महागठबंधन के सभी सहयोगी दल संतोष सहनी का समर्थन करेंगे।
महागठबंधन के अंदर की खींचतान
राजद और वीआईपी के बीच यह विवाद महागठबंधन की सीट बंटवारे की असहमति को दर्शाता है। गठबंधन दलों में सीटों को लेकर आम सहमति न बन पाने के कारण कई जगहों पर ऐसे विवाद उभरे हैं।
गौरा बौराम सीट पर यह खींचतान इसलिए और जटिल हुई क्योंकि राजद ने पहले ही अफजल अली को अपना उम्मीदवार घोषित किया था। अचानक वीआईपी के साथ समझौते ने अफजल और राजद के प्रचार अभियान में असामंजस्य पैदा कर दिया।
दरभंगा जिले की गौरा बौराम सीट पर बने हालात बिहार चुनाव 2025 में राजनीतिक ड्रामा और गठबंधन की आंतरिक जटिलताओं का उदाहरण हैं।
तेजस्वी यादव को अपने ही पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार करना पड़ेगा, यह स्थिति चुनावी राजनीति में असामान्य लेकिन महत्वपूर्ण मोड़ है। इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि सीट बंटवारे और गठबंधन सहयोग चुनाव परिणाम पर सीधे प्रभाव डाल सकते हैं।