पटना बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण के संपन्न होते ही कांग्रेस पार्टी को एक अप्रत्याशित झटका लगा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. शकील अहमद ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब बिहार में कांग्रेस पार्टी महागठबंधन के साथ मिलकर सत्ता की वापसी की कोशिश में लगी हुई है।
डा. शकील ने आगे लिखा है कि किसी भी दूसरी पार्टी में शामि होने का कोई इरादा नहीं है। अपने पूर्वजों की तरह उन्हें भी कांग्रेस की नीतियों और सिद्धांतों में अटूट विश्वास है।जीवनभर कांग्रेस की नीतियों और सिद्धांतों का शुभचिंतक और समर्थक बने इस फैसले ने बिहार कांग्रेस में हलचल मचा दी है, क्योंकि डॉ. अहमद न केवल एक अनुभवी नेता रहे हैं, बल्कि संगठन के भीतर उनका सम्मानित स्थान भी था।
पत्र में झलका दर्द और संतुलित लहजा
मल्लिकार्जुन खरगे को लिखे अपने पत्र में डॉ. अहमद ने भावनात्मक लेकिन संतुलित शब्दों में अपने निर्णय की जानकारी दी।
उन्होंने लिखा —
“मैंने 16 अप्रैल 2023 को ही सूचित किया था कि अब मैं कोई चुनाव नहीं लड़ूंगा। मेरे परिवार के सदस्य विदेश में रहते हैं और उनकी रुचि राजनीति में नहीं है। इसलिए मैंने दुखी मन से कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने का फैसला किया है।”
उन्होंने आगे लिखा कि वे किसी भी राजनीतिक दल में शामिल नहीं होंगे और जीवनभर कांग्रेस की नीतियों व सिद्धांतों के शुभचिंतक बने रहेंगे।उनके इस बयान ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह इस्तीफा किसी सियासी सौदे या गठजोड़ का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक व्यक्तिगत और वैचारिक निर्णय है।
डॉ. शकील अहमद का यह इस्तीफा न केवल कांग्रेस के लिए एक झटका है, बल्कि एक संवेदनशील सियासी संदेश भी है — कि पार्टी को अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ संवाद और सम्मान की संस्कृति को फिर से मजबूत करना होगा। वे भले ही पार्टी से अलग हो गए हों, लेकिन उनका कांग्रेस सिद्धांतों के प्रति विश्वास यह दर्शाता है कि विचारधारा की डोर अभी टूटी नहीं है।
