ढाका। ढाका की धानमंडी रोड नंबर 32 पर स्थित वह घर, जो कभी बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान का निवास था, आज खंडहर बन चुका है। यह कोई साधारण मकान नहीं था, बल्कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम, राजनीतिक उत्थान और दुखद इतिहास का जीवंत प्रतीक था। 2025 में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच इस ऐतिहासिक इमारत को कई बार तोड़फोड़ का शिकार बनाया गया, जिससे यह पूरी तरह ध्वस्त हो गई।
2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद यह घर पहली बार निशाने पर आया। अगस्त 2024 में प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ और आगजनी की, कई कलाकृतियां नष्ट हो गईं। लेकिन इमारत खड़ी रही। फरवरी 2025 में बड़ा हमला हुआ। शेख हसीना की भारत से दी गई भाषण को उकसावा मानकर प्रदर्शनकारियों ने ‘बुलडोजर मार्च’ निकाला। हथौड़ों, फावड़ों और एक्सकेवेटर से इमारत को ध्वस्त कर दिया गया। अंतरिम सरकार ने इसे ‘जनाक्रोश’ बताया, लेकिन सुरक्षा बलों की निष्क्रियता पर सवाल उठे।
यह विध्वंस बांग्लादेश की राजनीतिक ध्रुवीकरण को दर्शाता है। एक पक्ष इसे ‘फासीवाद की तीर्थस्थली’ कहकर मिटाना चाहता है, जबकि दूसरे इसे राष्ट्र की विरासत मानते हैं। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया, लेकिन इतिहास मिटाने की कोशिशों पर चुप्पी साधी। शेख हसीना ने कहा, “इमारत नष्ट कर सकते हैं, इतिहास नहीं।”
बंगबंधु की यादें किताबों, दस्तावेजों और लोगों के दिलों में बसी हैं। भाषा आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता तक की लड़ाई इसी घर से निर्देशित हुई। क्या ईंटें गिरने से वह संघर्ष मिट जाएगा? इतिहास बताता है कि यादें कभी नहीं मिटतीं – वे और मजबूत होकर उभरती हैं। बांग्लादेश का भविष्य इस सवाल पर टिका है कि वह अपनी विरासत को संजोएगा या नष्ट करेगा।
