समाचार मिर्ची

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दिल्ली। समाचार मिर्ची में अब ऐसी खबर की, जो आम लोगों के जेब और जीवन से सीधा वास्ता रखती है। शनिवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक के बाद कुछ ऐसी घोषणाएं कीं, जिन्हें सुनकर लगता है कि सरकार ने आखिरकार आम आदमी की सुध ले ही ली। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये राहत वाकई में उतनी बड़ी है, जितनी बताई जा रही है? क्या ये कदम सचमुच में जिंदगी आसान करेंगे, या फिर ये भी एक और जुमला है, जिसका असर कागजों तक ही सीमित रहेगा?

जीवन और स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी खत्म: राहत या रणनीति?

सबसे बड़ी खबर यह है कि जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों पर लगने वाला 18% जीएसटी अब पूरी तरह से हटा लिया गया है। टर्म इंश्योरेंस, यूलिप, एंडोमेंट, फैमिली फ्लोटर, वरिष्ठ नागरिकों की योजनाएं—सब अब जीएसटी के दायरे से बाहर। वित्त मंत्री ने कहा कि इससे बीमा सस्ता होगा, और ज्यादा से ज्यादा लोग बीमा के दायरे में आएंगे। सुनने में तो अच्छा लगता है। लेकिन जरा ठहरिए। बीमा कंपनियां, जो पहले से ही प्रीमियम के नाम पर मोटी रकम वसूलती हैं, क्या इस छूट का पूरा फायदा ग्राहकों को देंगी? या फिर प्रीमियम की दरों को बढ़ाकर इस राहत को बेअसर कर देंगी? यह सवाल इसलिए, क्योंकि बीमा क्षेत्र में पारदर्शिता की कमी कोई नई बात नहीं है। फिर भी, अगर यह छूट पूरी तरह से लागू होती है, तो मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग के लिए यह एक सांस लेने की जगह दे सकती है। खासकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए, जिनके लिए स्वास्थ्य बीमा किसी वरदान से कम नहीं। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या सरकार बीमा कंपनियों पर नजर रखेगी, ताकि वे इस छूट का दुरुपयोग न करें? यह देखना होगा।

जीवन रक्षक दवाएं और जरूरी वस्तुएं: कितनी राहत?

जीएसटी परिषद ने 33 जीवन रक्षक दवाओं पर 12% जीएसटी को शून्य कर दिया। कैंसर, दुर्लभ और दीर्घकालिक बीमारियों की तीन अहम दवाएं भी अब टैक्स-मुक्त। यह कदम उन परिवारों के लिए बड़ा है, जो इन बीमारियों से जूझ रहे हैं। एक कैंसर मरीज का इलाज लाखों में जाता है। अगर दवाओं पर टैक्स हटने से कुछ हजार की बचत होती है, तो यह उनके लिए बड़ी राहत है। लेकिन सवाल वही—क्या दवा कंपनियां इस छूट का फायदा मरीजों तक पहुंचाएंगी, या फिर अपने मुनाफे में जोड़ लेंगी? इसके अलावा, यूएचटी दूध, पनीर, रोटी, चपाती और पराठे जैसी रोजमर्रा की चीजों पर भी जीएसटी खत्म कर दिया गया है। नवरात्रि के पहले दिन, 22 सितंबर से ये दरें लागू होंगी। सुनने में यह छोटी बात लगती है, लेकिन जिन घरों में हर दिन रोटी बनती है, उनके लिए यह कुछ पैसे बचाने का मौका है। लेकिन यहां भी सवाल है—क्या बाजार में इन चीजों की कीमतें वाकई कम होंगी? या फिर दुकानदार और कंपनियां इस छूट को अपनी जेब में डाल लेंगी?

कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था: क्या कोई असर?

जीएसटी की छूट का असर सिर्फ शहरी मध्यम वर्ग तक सीमित नहीं है। ग्रामीण भारत, जहां दूध और दूध से बने उत्पाद रोजगार और आय का बड़ा स्रोत हैं, वहां यूएचटी दूध और पनीर पर टैक्स हटने से डेयरी उद्योग को कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन क्या यह राहत छोटे किसानों और डेयरी वालों तक पहुंचेगी, या फिर बड़े कॉरपोरेट्स इसे लपक लेंगे? यह सवाल इसलिए, क्योंकि सरकार की नीतियां अक्सर बड़े खिलाड़ियों के पक्ष में झुकती दिखती हैं।

स्वास्थ्य क्षेत्र: एक कदम आगे, दो कदम पीछे?

स्वास्थ्य क्षेत्र में 33 दवाओं पर जीएसटी खत्म करना निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। लेकिन भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी, डॉक्टरों की कमी, और निजी अस्पतालों में लूट—इन सबके बीच यह छूट कितना असर डालेगी? अगर दवाएं सस्ती हो भी जाएं, तो क्या इलाज का खर्च कम होगा? क्या सरकार निजी अस्पतालों पर भी कोई लगाम लगाएगी? ये सवाल इसलिए, क्योंकि बिना समग्र सुधार के ऐसी छूट अधूरी राहत ही देती हैं।

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