प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार आसियान समिट 2025 में व्यक्तिगत रूप से हिस्सा नहीं लेंगे। यह सम्मेलन 26 से 28 अक्टूबर के बीच मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आयोजित होने जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की जगह विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। इस फैसले के बाद कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधा है और आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से आमने-सामने मिलने से बच रहे हैं।
कांग्रेस का आरोप – “ट्रम्प से मिलने से बच रहे हैं मोदी”
प्रधानमंत्री मोदी के मलेशिया न जाने के फैसले पर कांग्रेस ने इसे राजनीतिक रूप से जोड़ते हुए तीखा हमला बोला है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी डोनाल्ड ट्रम्प से आमने-सामने आने से बचना चाहते हैं।
पहली बार पीएम मोदी नहीं होंगे आसियान समिट में
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी अब तक 12 बार आसियान (ASEAN) समिट में हिस्सा ले चुके हैं। 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान यह समिट वर्चुअल रूप में हुई थी, और तब भी मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हिस्सा लिया था।
यह पहली बार होगा जब वे किसी इन-पर्सन आसियान समिट में शामिल नहीं होंगे।
मलेशिया की तैयारियां और ट्रम्प का दौरा
इस बार मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम की मेजबानी में आसियान समिट में अमेरिका, जापान, चीन, भारत, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य साझेदार देशों के नेता हिस्सा लेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 26 अक्टूबर से दो दिवसीय दौरे पर कुआलालंपुर पहुंचेंगे। ट्रम्प इस दौरान दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार, सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक रणनीति पर बात करेंगे।
कांग्रेस के हमले से बढ़ा राजनीतिक तापमान
कांग्रेस के बयान के बाद भाजपा ने पलटवार किया है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस बेवजह प्रधानमंत्री की विदेश नीति को विवादित बना रही है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा,
“प्रधानमंत्री मोदी का हर निर्णय राष्ट्रहित में होता है। कांग्रेस को विदेश नीति की गंभीरता समझनी चाहिए। ट्रम्प से न मिलना कोई ‘भय’ नहीं, बल्कि कार्यक्रम का समन्वय है।”
बीजेपी नेताओं ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री कई वैश्विक मंचों पर ट्रम्प से मिल चुके हैं, और भारत-अमेरिका संबंध पहले से कहीं अधिक मजबूत हैं।
प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के बीच व्यक्तिगत स्तर पर हमेशा गर्मजोशी दिखाई दी है। 2019 में ह्यूस्टन में हुए “Howdy Modi” कार्यक्रम और 2020 के “Namaste Trump” आयोजन ने दोनों नेताओं की साझेदारी को चर्चा में ला दिया था।
हालांकि, ट्रम्प के हालिया बयानों ने नई बहस को जन्म दिया है। उन्होंने दावा किया था कि भारत ने उनके दबाव में रूस से तेल खरीदना कम करने का वादा किया था। इन दावों पर भारत ने कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की, लेकिन विपक्ष ने इन्हें लेकर सरकार पर सवाल उठाए।
विदेश नीति पर सियासी बयानबाज़ी
कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं और कूटनीति पर सवाल उठाना नया नहीं है। पहले भी राहुल गांधी और जयराम रमेश ने मोदी की “इवेंट-ड्रिवन डिप्लोमेसी” की आलोचना की थी। वहीं भाजपा का कहना है कि मोदी ने भारत की वैश्विक स्थिति को पहले से कहीं मजबूत किया है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 के चुनावी माहौल में हर अंतरराष्ट्रीय कदम को राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है।
बता दें कि, प्रधानमंत्री मोदी का आसियान समिट में न जाना एक सामान्य राजनयिक निर्णय हो सकता है, लेकिन कांग्रेस ने इसे राजनीतिक विवाद का रूप दे दिया है। जयशंकर की उपस्थिति यह दिखाती है कि भारत क्षेत्रीय मंचों पर अपनी भागीदारी बनाए रखना चाहता है।
अब देखना होगा कि वर्चुअल रूप से मोदी का संबोधन और जयशंकर की उपस्थिति भारत की विदेश नीति को किस दिशा में आगे बढ़ाती है — और क्या कांग्रेस का “ट्रम्प-टिप्पणी” आने वाले दिनों में राजनीतिक बहस का नया मुद्दा बनती है या नहीं।
