नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत आज 11 सितंबर 2025 को 75 वर्ष के हो गए। भागवत पिछले 16 वर्षों से संघ का नेतृत्व कर रहे हैं और इस दौरान उन्होंने न केवल संगठन को विस्तार दिया बल्कि उसकी विचारधारा को समाज में व्यापक स्तर पर प्रसारित करने का कार्य भी किया। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में 11 सितंबर 1950 को जन्मे भागवत आरएसएस के उन चुनिंदा सरसंघचालकों में शामिल हो चुके हैं जिन्होंने लंबे समय तक संघ का संचालन किया है। कार्यकाल की अवधि के लिहाज से वे गुरुजी (एम.एस. गोलवलकर) और बालासाहेब देवरस के बाद तीसरे स्थान पर आते हैं।
जानकारी दे दें कि, म 11 सितंबर, 1950 को जन्मे भागवत आरएसएस प्रमुख के कार्यकाल की अवधि के मामले में एमएस गोलवलकर और मधुकर दत्तात्रेय देवरस (बालासाहेब) के बाद तीसरे स्थान पर हैं। आरएसएस के तीसरे प्रमुख रहे बालासाहेब 20 से अधिक वर्षों तक शीर्ष पद पर रहे, जबकि दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर ने 32 वर्षों से अधिक समय तक संगठन का नेतृत्व किया। भागवत ने लगभग 50 साल पहले आरएसएस के प्रचारक के रूप में काम करना शुरू किया और मार्च 2009 में इसके सरसंघचालक (प्रमुख) बने। उनके पिता मधुकरराव भागवत भी एक प्रचारक यानी एक पूर्णकालिक आरएसएस कार्यकर्ता थे।
75 वर्ष की उम्र और संन्यास की अटकलें
मोहन भागवत ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर यह बात कही थी कि 75 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति को सक्रिय सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेना चाहिए। इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जाने लगे कि वे स्वयं भी 75 वर्ष की आयु पूरी होने पर पद छोड़ देंगे। साथ ही यह चर्चा भी हुई कि उनका संकेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर था, जो इस महीने 17 सितंबर को 75 वर्ष के होने जा रहे हैं।
मोहन भागवत हमेशा से संगठन की मजबूती, अनुशासन और राष्ट्र निर्माण की बात करते रहे हैं। उन्होंने कई बार कहा है कि भारत की असली ताकत उसकी संस्कृति और परंपराओं में है। उनका मानना है कि समाज को मजबूत किए बिना राष्ट्र मजबूत नहीं हो सकता। उनके नेतृत्व में संघ ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुधार और सेवा कार्यों पर विशेष जोर दिया है। प्राकृतिक आपदाओं के समय स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने वाले राहत कार्यों ने यह दिखाया कि संघ केवल वैचारिक संगठन ही नहीं बल्कि सामाजिक सेवा का भी मजबूत स्तंभ है।
बता दें कि, मोहन भागवत का 75वां जन्मदिन केवल एक व्यक्ति के जीवन का मील का पत्थर नहीं है, बल्कि आरएसएस जैसे विशाल संगठन की निरंतरता और उसकी वैचारिक यात्रा का भी प्रतीक है। भागवत ने संघ की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इसे समय की जरूरतों के हिसाब से ढालने की कोशिश की है। आने वाले समय में उनका अनुभव और मार्गदर्शन संघ व भारतीय समाज दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।