हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। यह त्योहार पूरे भारत में बड़े हर्ष और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 22 सितंबर 2025 से हुई है और 2 अक्तूबर को विजयदशमी (दशहरा) के साथ इसका समापन होगा। नौ दिनों तक भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं।
हवन के लिए कई प्रकार की सामग्री की आवश्यकता होती है। इनमें सूखा नारियल, मुलैठी की जड़, कलावा, हवन कुंड, लाल कपड़ा, अश्वगंधा, ब्राह्मी, सूखी लकड़ियां, चंदन की लकड़ी, बेल, नीम, पीपल का तना, आम की लकड़ी और गूलर की छाल शामिल हैं। इसके अलावा, काला तिल, कपूर, चावल, गाय का घी, लौंग, लोभान, इलायची, गुग्गल, जौ और शक्कर का उपयोग भी आहुति देने में किया जाता है।
अष्टमी और नवमी तिथि पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र पहनने चाहिए। इसके बाद हवन कुंड को साफ स्थान पर स्थापित करें और उस पर स्वास्तिक बनाएं। देशी घी का दीपक जलाकर मां दुर्गा के नौ रूपों का पूजन करें। हवन कुंड में आम की लकड़ी से अग्नि प्रज्वलित करें और फिर मंत्रों के साथ हवन सामग्री की आहुति दें।
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा’ मंत्र का उच्चारण करते हुए घी, तिल, जौ, चावल, गुग्गुल आदि को अग्नि में अर्पित करें। हवन के अंत में पूर्णाहुति देकर मां दुर्गा से सुख-शांति और समृद्धि की प्रार्थना करें।
क्यों जरूरी है नवरात्र में हवन?
नवरात्र में हवन करने का प्रचलन बहुत पुराना है। मान्यता है कि हवन की पवित्र अग्नि और उसमें दी जाने वाली आहुतियां वातावरण को शुद्ध करती हैं। हवन से निकलने वाला धुआं नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है और घर के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
नवरात्र की अष्टमी और नवमी के दिन हवन करना एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाभकारी है। सही विधि, मंत्र और नियमों के साथ किया गया हवन घर में सुख-शांति और समृद्धि का संचार करता है। इसलिए, इस बार नवरात्र में अष्टमी या नवमी को परिवार सहित हवन जरूर करें और मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करें।