बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का पहला चरण 6 नवंबर को 121 विधानसभा सीटों पर होने वाला है, और इस चरण की तस्वीर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए बेहद निर्णायक है। जेडीयू के लिए यह चुनाव “करो या मरो” जैसी स्थिति लेकर आया है, क्योंकि इस चरण का नतीजा सीधे उनके राजनीतिक भविष्य और सत्ता पर पकड़ को प्रभावित करेगा।
पहले चरण के चुनाव में असल लड़ाई जेडीयू की है, जिसमें महागठबंधन के आरजेडी से कांग्रेस और लेफ्ट तक से उसे दो-दो हाथ करना पड़ रहा है. 2020 में आरजेडी के नीतीश कुमार को सत्ता का सूर्यास्त देखने के लिए मजबूर किया जा सकता है या फिर अगर उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया तो क्या वे अपने राजनीतिक जीवन का आखरी पद होगा।
पहले चरण का चुनावी परिदृश्य
जेडीयू इस बार पहले चरण में कुल 57 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। एनडीए में सहयोगी दलों के हिस्से में:
- बीजेपी: 48 सीटें
- एलजेपी (चिराग पासवान): 14 सीटें
- एचएएम (जीतिन राम मांझी) और आरएलएम (उपेंद्र कुशवाहा)
महागठबंधन की ओर से जेडीयू को चुनौती देने के लिए आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट पूरी ताकत झोंक रहे हैं। इस चरण में असल लड़ाई जेडीयू और आरजेडी के बीच है, वहीं कांग्रेस और लेफ्ट छोटे लेकिन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जेडीयू को टक्कर दे रहे हैं।
नीतीश कुमार की चुनौती
दो दशक से बिहार की सियासत में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव अलग चुनौती लेकर आया है। भले ही जेडीयू ने एनडीए के तहत बीजेपी और अन्य सहयोगियों के साथ चुनाव लड़ रही है, लेकिन सीएम के नाम पर रजामंदी कम दिखाई दे रही है।
अगर पहले चरण में जेडीयू प्रदर्शन असंतोषजनक रहता है, तो नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री पद संकट में आ सकता है। वहीं अगर जेडीयू को पहले चरण में पर्याप्त सीटें मिलती हैं, तो यह उनके सियासी प्रभुत्व को और मजबूत करेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार की सियासी धुरी पर खड़े नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव करो या मरो जैसी स्थिति है, क्योंकि पहले चरण के परिणामों के आधार पर दूसरे चरण की रणनीति और गठबंधन राजनीति तय होगी।
बता दें कि, बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों का नतीजा सीधे नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य और सत्ता पर पकड़ को प्रभावित करेगा। जेडीयू के लिए यह “करो या मरो” की लड़ाई है, और इस चरण की जीत या हार उनके मुख्यमंत्री पद और राजनीतिक जीवन की दिशा तय करेगी।