नई दिल्ली। पश्चिम एशिया के लंबे संघर्ष और गाज़ा में जारी मानवीय संकट के बीच, फिलिस्तीन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने की प्रक्रिया तेज हो गई है। बीते 24 घंटों में ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने फिलिस्तीन को औपचारिक तौर पर एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी। इसके साथ ही फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले देशों की संख्या अब करीब 150 तक पहुंच गई है।
फ्रांस की मान्यता मिलने के बाद फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के 5 में 4 स्थाई देशों का समर्थन मिल जाएगा।
चीन और रूस दोनों ने 1988 में फिलिस्तीन को मान्यता दी थी। ऐसे में अमेरिका इकलौता देश होगा जिसने फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दी है। उसने ने फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) को मान्यता दी है। फिलिस्तीनी अथॉरिटी 1994 में इसलिए बनाई गई थी ताकि फिलिस्तीनियों के पास अपनी स्थानीय सरकार जैसी व्यवस्था हो और आगे चलकर यह पूरा राज्य बनने की नींव बन सके।
पुर्तगाल और कनाडा का समर्थन
पुर्तगाल के विदेश मंत्री पाउलो रेंजेल ने कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देना ही स्थायी शांति का एकमात्र रास्ता है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने भी इसी सोच को साझा करते हुए फिलिस्तीन को मान्यता देने का फैसला किया।
इन देशों का मानना है कि जब तक फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा, तब तक मध्य पूर्व में शांति की संभावना अधूरी रहेगी। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका अब भी फिलिस्तीन को मान्यता देने के खिलाफ है। अमेरिका का कहना है कि वह फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) को मान्यता देता है, लेकिन फिलिस्तीन को औपचारिक रूप से देश नहीं मानता।
दूसरी ओर, फ्रांस ने घोषणा की है कि वह इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को मान्यता देने के पक्ष में वोट करेगा। यदि ऐसा हुआ तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के 5 स्थायी सदस्यों में से 4 फिलिस्तीन के समर्थन में होंगे।
इजराइल की प्रतिक्रिया – “आतंकवाद को इनाम”
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इन कदमों की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश मानना आतंकवाद को इनाम देने जैसा है।
संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से करीब 150 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। इसका मतलब है कि दुनिया के लगभग 75% देश फिलिस्तीन के समर्थन में खड़े हैं। फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में “परमानेंट ऑब्जर्वर स्टेट” का दर्जा हासिल है। इसका अर्थ है कि वह यूएन के कार्यक्रमों में शामिल हो सकता है, लेकिन उसे वोटिंग का अधिकार प्राप्त नहीं है।
ब्रिटेन का फैसला क्यों अहम?
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने स्पष्ट किया कि उनका फैसला इजराइल को सजा देने के लिए नहीं है। लेकिन उन्होंने संकेत दिया कि अगर नेतन्याहू की सरकार ने गाजा में सैन्य कार्रवाई को कम हिंसक ढंग से और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप किया होता, तो शायद यह कदम अभी नहीं उठाया जाता।
बता दें कि, फिलिस्तीन को मान्यता देने का यह दौर इतिहास में एक अहम मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। अब तक 150 देशों का समर्थन, फ्रांस का आगामी वोट और ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया व पुर्तगाल जैसे देशों का ताजा ऐलान इस बात का संकेत है कि दुनिया “दो राष्ट्र समाधान” की ओर झुक रही है।