नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही ड्रैगन की मांद में कदम रखने वाले हैं। जी हां, 31 अगस्त 2025 को पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में हिस्सा लेने चीन जा सकते हैं। ये उनकी 2019 के बाद पहली आधिकारिक चीन यात्रा होगी। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये दौरा सिर्फ SCO की औपचारिकता है, या इसके पीछे कुछ बड़ा कूटनीतिक खेल चल रहा है?
सूत्रों और सोशल मीडिया (खासकर X) पर चल रही चर्चाओं के मुताबिक, पीएम मोदी 31 अगस्त से 2 सितंबर तक चीन में होंगे। SCO समिट के बहाने वो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और शायद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी अनौपचारिक मुलाकात कर सकते हैं। ये दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब भारत-चीन रिश्तों में गलवान घाटी की कड़वाहट के बाद कुछ सुधार के संकेत दिख रहे हैं। हाल ही में दोनों देशों ने LAC पर तनाव कम करने के लिए सैन्य गश्त पर समझौता किया है, जिसके बाद द्विपक्षीय रिश्तों को सामान्य करने की बातें तेज़ हुई हैं।
क्यों है ये दौरा खास?
LAC पर शांति की उम्मीद: 2020 की गलवान झड़प के बाद भारत-चीन रिश्ते ठंडे बस्ते में थे। वीजा प्रतिबंध, चीनी निवेश पर सख्ती, और डायरेक्ट फ्लाइट्स पर रोक ने माहौल को और तल्ख किया था। लेकिन अब दोनों देशों के बीच हालिया बॉर्डर डील और विदेश मंत्रियों की मुलाकातों ने उम्मीद जगाई है। क्या मोदी-शी की मुलाकात LAC पर स्थायी शांति की दिशा में बड़ा कदम होगी, या ये बस एक और औपचारिकता?
SCO और BRICS का मंच: SCO समिट में हिस्सा लेना भारत के लिए रणनीतिक रूप से अहम है, क्योंकि ये मंच भारत को रूस, चीन, और मध्य एशियाई देशों के साथ अपने हितों को साधने का मौका देता है। X पर कुछ यूजर्स तो ये भी पूछ रहे हैं कि क्या मोदी इस दौरे में LAC पर कब्जाई गई जमीन वापस लाने की बात उठाएंगे? दूसरी तरफ, BRICS समिट में भी मोदी-शी की मुलाकात की संभावना है, जो वैश्विक मंच पर भारत-चीन सहयोग को बढ़ावा दे सकती है।
ट्रम्प फैक्टर: इधर, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी ने भारत की कूटनीति को और दिलचस्प बना दिया है। ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” पॉलिसी और भारत पर टैरिफ की धमकियों के बीच, क्या मोदी का चीन दौरा एक बैलेंसिंग एक्ट है? कुछ विश्लेषक मानते हैं कि भारत, चीन के साथ रिश्ते सुधारकर ट्रम्प के दबाव को काउंटर करने की कोशिश कर सकता है।