हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और वैष्णव परंपरा में इसका विशेष महत्व बताया गया है। “सफला” शब्द का अर्थ है सफलता प्रदान करने वाली, यानी यह एकादशी जीवन में किए जा रहे प्रयासों को सफल बनाती है और साधक को आध्यात्मिक व सांसारिक दोनों स्तरों पर उन्नति की ओर ले जाती है।
सफला एकादशी का धार्मिक महत्व
शास्त्रों में एकादशी को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। सफला एकादशी का उल्लेख पद्म पुराण और अन्य वैष्णव ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि यह एकादशी मनुष्य के जीवन में आई बाधा
पूजा विधि (क्रमबद्ध तरीके से)
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर और पूजा स्थल को साफ करें, गंगा जल छिड़कें।
- चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- संकल्प लें: हाथ में जल, अक्षत और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प करें।
- दीपक जलाएं (घी का), फूल माला चढ़ाएं, कुमकुम तिलक लगाएं।
- फल, फूल, रोली, तुलसी पत्र और भोग अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और सफला एकादशी की कथा सुनें/पढ़ें।
- मंत्र जाप करें और आरती करें।
- मंत्र जाप करें और आरती करें।
- रात में जागरण करें (भजन-कीर्तन) यदि संभव हो।
व्रत पारण समय
- द्वादशी तिथि पर: 16 दिसंबर 2025, सुबह 7:07 बजे से 9:11 बजे तक (हरि वासर से बचें)।
- पारण से पहले ब्राह्मण भोजन कराएं या दान करें।
यह व्रत रखने से जीवन में सफलता, धन-धान्य और सुख-शांति प्राप्त होती है। भगवान विष्णु की कृपा आप सभी पर बनी रहे! बता दें कि, सफला एकादशी भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर मानी जाती है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि जीवन में सफलता, समृद्धि और संतुलन भी लाता है। जो श्रद्धालु नियमपूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनके जीवन में सुख-शांति और सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं।
