सीतामढ़ी। सोशल मीडिया पर कुछ दिनों से एक ऐसा मैसेज वायरल हो रहा है जिसे पढ़ने के बाद हर कोई सदमे में है। दरअसल खबर ही कुछ ऐसी भ्रामक की थी किसी का भी दीमाग काम करना बंद कर देगा। दरअसल दावा किया जा रहा था कि बिहार में HIV पॉजिटिव मरीजों की तादाद इतनी बढ़ गई है कि हर चौथा आदमी इसकी चपेट में है। खासकर सितमढ़ी जिले में तो हालात इतने खराब बता रहे थे कि लोग डर के मारे घर से निकलने को ही तैयार नहीं।
मगर आपको घबराने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। ये सब बस अफवाहों का जाल है। बिहार स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी (BSACS) ने अब इस पर साफ-साफ सफाई दी है और कहा है कि ये आंकड़े बिल्कुल गलत और भ्रामक हैं। आइए, जानते हैं कि असल में हकीकत क्या है।
वायरल मैसेज में क्या था दावा?
वायरल हो रहे इस मैसेज में लिखा था कि बिहार में कुल 5 लाख से ज्यादा HIV मरीज हैं, जिनमें से सितमढ़ी जिले में ही 1.5 लाख लोग इस संक्रमण से जूझ रहे हैं। इतना ही नहीं, ये मैसेज तो और भी डराता है – कहता है कि राज्य में हर 4 में से 1 पुरुष HIV पॉजिटिव है। सोचिए, अगर ऐसा होता तो बिहार की सड़कें, बाजार और घर-घर में ये डर कैसा माहौल बना देता! लोग घबरा गए, कईयों ने तो डॉक्टरों के चक्कर काटना शुरू कर दिया। लेकिन ये अफवाह आखिर फैली कैसे.? BSACS के अधिकारियों के मुताबिक, ये आंकड़े पुरानी रिपोर्ट्स को तोड़-मरोड़कर पेश करने का नतीजा है।
सरकारी कमिटी की सफाई: आंकड़ों में कितनी है सच्चाई ?
बिहार एड्स कंट्रोल सोसाइटी ने बयान जारी कर सच्चाई बयान की। उनके अनुसार, पूरे बिहार में HIV संक्रमित मरीजों की संख्या महज 38,745 है, न कि 5 लाख। और सितमढ़ी जिले की बात करें तो यहां सिर्फ 1,200 से थोड़े ज्यादा केस हैं – यानी वो 1.5 लाख का दावा बकवास है। राज्य स्तर पर संक्रमण दर भी बहुत कम है, सिर्फ 0.19 फीसदी। ये आंकड़े राष्ट्रीय एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (NACO) की ताजा रिपोर्ट पर आधारित हैं।
डॉ. मनोज कुमार, BSACS के एक अधिकारी ने बताया, “ये वायरल मैसेज लोगों में घबराहट फैला रहा है, जो हमारे प्रयासों को कमजोर कर रहा है। हमारी टीमें लगातार टेस्टिंग और जागरूकता कैंप चला रही हैं। उन्होंने ये भी कहा कि बिहार सरकार मुफ्त दवाओं और काउंसलिंग के जरिए मरीजों की मदद कर रही है, ताकि कोई अकेला न महसूस करे।
क्यों फैल रही हैं ऐसी अफवाहें?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि सोशल मीडिया पर बिना सोचे-समझे शेयर हो जाना आज की बड़ी समस्या है। कभी-कभी पुरानी या आधी-अधूरी रिपोर्ट्स को सनसनीखेज बनाकर वायरल कर दिया जाता है। खासकर स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील मुद्दे पर ये और खतरनाक साबित होता है। BSACS ने लोगों से अपील की है कि ऐसी खबरों पर भरोसा करने से पहले आधिकारिक स्रोतों से चेक करें। चाहे वो NACO की वेबसाइट हो या स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र।
