भारत त्योहारों की भूमि है और उनमें से एक सबसे भव्य और भक्ति से परिपूर्ण पर्व है दुर्गा पूजा। यह पर्व न केवल पश्चिम बंगाल, बल्कि बिहार, झारखंड, असम और पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि के दौरान आयोजित यह उत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।
शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पूजा का उत्सव पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में मनाया जाता है. दुर्गा पूजा के भव्य उत्सव के लिए पश्चिम बंगाल प्रसिद्ध है. दुर्गा पूजा के समय लोग पांडाल बनाकर मां दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना करते हैं. उनकी पूजा की जाती है और फिर दुर्गा विसर्जन होता है. इस साल दुर्गा पूजा में मूर्ति स्थापना कब होगी? मातारानी की आंख किस दिन खुलेगी? पंचांग से जानते हैं मूर्ति स्थापना मुहूर्त के बारे में.
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, दुर्गा पूजा में मूर्ति स्थापना महासप्तमी के दिन यानि आश्विन शुक्ल सप्तमी तिथि को होती है. पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल सप्तमी तिथि 28 सितंबर को दोपहर में 02:27 पी एम से शुरू हो रही है, इसका समापन 29 सितंबर को शाम 04:31 पी एम पर होगा. ऐसे में महासप्तमी 29 सितंबर दिन सोमवार को है. इस आधार पर दुर्गा पूजा में मिट्टी से बनी मूर्ति की स्थापना 29 सितंबर को होगी.
दुर्गा पूजा 2025 में मूर्ति स्थापना कब होगी?
हिंदू पंचांग के अनुसार, दुर्गा पूजा के तीन दिन — महासप्तमी, दुर्गा अष्टमी और महानवमी — सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं। मूर्ति स्थापना का विशेष अनुष्ठान महासप्तमी तिथि को होता है।
पंचांग गणना के मुताबिक, आश्विन शुक्ल सप्तमी तिथि 28 सितंबर 2025 को दोपहर 2 बजकर 27 मिनट से प्रारंभ होगी और इसका समापन 29 सितंबर को शाम 4 बजकर 31 मिनट पर होगा। इस आधार पर महासप्तमी 29 सितंबर, सोमवार को पड़ेगी। इसी दिन मां दुर्गा की मूर्ति की स्थापना की जाएगी।
दुर्गा पूजा 2025 में मां दुर्गा की मूर्ति की स्थापना 29 सितंबर, सोमवार को महासप्तमी के दिन होगी। इसी दिन मातारानी की आंख खोली जाएगी, जो उनके जागरण का प्रतीक है। पंडालों में उमड़ने वाली भक्तों की भीड़ और देवी आराधना का यह पर्व न केवल आस्था, बल्कि कला और संस्कृति का भी उत्सव है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि असत्य और अधर्म कितना भी प्रबल क्यों न हो, अंततः सत्य और न्याय की ही विजय होती है।