इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच सोमवार को न्यूयॉर्क में हुई संयुक्त राष्ट्र की बैठक ने विश्व राजनीति में बड़ा मोड़ ला दिया। इस बैठक में फ्रांस, मोनाको, माल्टा, लक्ज़मबर्ग और बेल्जियम ने फिलिस्तीन को आधिकारिक तौर पर स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा कर दी। इससे पहले रविवार को ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल भी फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। अब तक करीब 150 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं।
गाजा में 2 साल से जारी जंग के बीच भुखमरी और बर्बादी की तस्वीरें, इजराइल की लगातार सैन्य कार्रवाई से इजराइल को लेकर दुनिया की राय बदल रही है। इन्हीं वजहों से कई देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता देने का फैसला किया है। बता दें कि, बैठक की अध्यक्षता फ्रांस और सऊदी अरब ने की। इस दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा: कि,आज फ्रांस फिलिस्तीन को मान्यता देता है। हमें शांति का रास्ता बनाना होगा।” मैक्रों ने इसे हमास की हार बताया। उनके इस बयान पर सभा में जोरदार तालियां बजीं और फिलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल ने खड़े होकर इसका स्वागत किया।
इजराइल का कड़ा विरोध
इस पहल का इजराइल ने जोरदार विरोध किया। संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के राजदूत डैनी डैनन ने कहा कि उनकी सरकार इसका जवाब देगी। इजराइल का रुख साफ है कि जब तक हमास को खत्म नहीं किया जाता, तब तक फिलिस्तीन की मान्यता शांति नहीं बल्कि संघर्ष को और बढ़ावा देगी।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता मिलना किसी पुरस्कार जैसा नहीं है, बल्कि यह उनका मौलिक अधिकार है। उन्होंने जोर दिया कि यह कदम इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के स्थायी समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
बता दें कि, फ्रांस, बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, मोनाको और माल्टा द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता देना न केवल मध्य-पूर्व की राजनीति बल्कि वैश्विक कूटनीति में भी बड़ा बदलाव है। मैक्रों का बयान, अब्बास की घोषणाएं और UN महासचिव का समर्थन इस ओर इशारा करता है कि दुनिया अब दो-राष्ट्र समाधान की दिशा में ठोस कदम बढ़ाने को तैयार है। हालांकि इजराइल का विरोध और जमीनी हालात बड़ी चुनौतियां बने हुए हैं, फिर भी यह मान्यता फिलिस्तीन के लिए एक नई शुरुआत का संदेश है।