भारत अपनी जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों के लिए पूरी दुनिया में पहचाना जाता है। यहां के जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं हैं, बल्कि यह करोड़ों जीव-जंतुओं, पक्षियों, वनस्पतियों और मानव समुदायों की जीवन रेखा हैं। लेकिन इन वनों को बचाना हमेशा आसान नहीं रहा। कभी अवैध कटाई, कभी शिकार तो कभी लालच और महत्वाकांक्षा के कारण वनों को गंभीर खतरा झेलना पड़ा। ऐसे संकट के बीच कई गुमनाम नायकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर जंगलों और पेड़ों की रक्षा की। इन्हीं नायकों की स्मृति और बलिदान को याद करने के लिए हर साल 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस (National Forest Martyrs Day) मनाया जाता है।
गौरतलब हैं कि, 2013 में भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 11 सितंबर को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय वन शहीद दिवस घोषित किया। इस तिथि का चयन 1730 में हुए खेजड़ली नरसंहार के कारण किया गया, जब राजस्थान के बिश्नोई समाज के लोगों ने पेड़ों की रक्षा के लिए अपनी जानें न्योछावर कर दी थीं।
जानकारी दे दें कि, वन शहीद दिवस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ यह भयानक घटना थी. मारवाड़ साम्राज्य के महाराजा अभय सिंह ने खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया, जिन्हें बिश्नोई लोग पूजते हैं. अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में ग्रामीणों ने पेड़ों को गले लगाया और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए स्वेच्छा से अपनी जान दे दी. यह शांतिपूर्ण विरोध एक राष्ट्रीय आंदोलन और पर्यावरण कार्रवाई का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया.
गौरतलब हैं कि, दुर्भाग्य से याद तक 1972-1982: खेजरली नरसंहार ने वन संरक्षण के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू किए. अभियानकर्ताओं और पर्यावरण संगठनों ने प्राकृतिक दुनिया की रक्षा करने वालों द्वारा किए गए बलिदानों को मान्यता देने के लिए जोर दिया. 1982 में, भारत सरकार ने आखिरकार 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में राष्ट्रीय अवकाश की स्थापना की, ताकि उनकी स्मृति का सम्मान किया जा सके.
वही, राष्ट्रीय वन शहीद दिवस 2025 हमें याद दिलाता है कि जंगलों की रक्षा कोई आसान काम नहीं है। यह उन गुमनाम नायकों की कहानी है, जिन्होंने हमें हरियाली, सांस लेने की हवा और जैव विविधता देने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। खेजड़ली से लेकर आधुनिक वन रक्षकों तक, यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि प्रकृति की रक्षा ही भविष्य की सुरक्षा है।