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संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले ही देश का राजनीतिक माहौल असामान्य रूप से गरम हो चुका है। मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) पर उठे सवालों और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हालिया घटनाक्रमों ने इस सत्र को बेहद महत्वपूर्ण बना दिया है। विपक्ष स्पष्ट संकेत दे चुका है कि जब तक SIR पर विस्तृत चर्चा नहीं होती, तब तक सदन सुचारु रूप से नहीं चल पाएगा। दूसरी ओर, केंद्र सरकार का कहना है कि विधायी कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और संसद का समय देशहित में प्रभावी ढंग से उपयोग होना चाहिए।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में हुई बैठक में संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजिजू ने विपक्ष से ‘ठंडे दिमाग’ से काम लेने की अपील करते हुए कहा कि मतभेद लोकतंत्र का आधार है, लेकिन सदन की गरिमा बनाए रखना सभी दलों की साझा जिम्मेदारी है।

बिहार चुनाव के बाद पहला बड़ा सत्र—क्यों है इतना अहम?

फिलहाल राजनीतिक परिस्थितियों में बड़ा बदलाव लाने वाले बिहार विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। यह सत्र बिहार चुनाव के बाद पहला सत्र है, इसलिए इसके राजनीतिक मायने और बढ़ जाते हैं। नई परिस्थितियों में सरकार आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। ऐसे में सरकार चाहती है कि बिलों पर चर्चा हो, महत्वपूर्ण विधेयक पारित हों और विकास से जुड़े मुद्दों पर आगे बढ़ा जाए।

विपक्ष का रुख बिल्कुल अलग है। वह इसे लोकतांत्रिक पारदर्शिता और मतदाता अधिकारों से जुड़ा सवाल मानते हुए संसद के मंच का उपयोग सरकार पर दबाव बनाने के लिए करना चाहता है। सत्र शुरू होने से ठीक पहले रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक ने इन विवादों की झलक पहले ही दिखा दी। विपक्ष के नेताओं ने SIR और राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया और स्पष्ट कहा कि जब तक इन मुद्दों पर गंभीर चर्चा नहीं होगी, सदन का कामकाज सामान्य नहीं चलेगा।

क्या होगा संसद का माहौल?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सत्र दो कारणों से ऐतिहासिक हो सकता है:

  1. टकराव का स्तर पिछले सत्रों की तुलना में अधिक तीखा हो सकता है।
  2. चर्चा लोकतंत्र और मतदाता अधिकारों जैसे मूल मुद्दों पर केंद्रित रहेगी।

जानकारी दे दें कि, इस सत्र में सरकार और विपक्ष, दोनों के लिए अवसर और चुनौती मौजूद है। जहां सरकार सुधारों को आगे बढ़ाना चाहती है, वहीं विपक्ष इसे लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए जरूरी मोड़ मान रहा है। अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि सदन का माहौल किस दिशा में जाता है—सहयोग की ओर या टकराव की ओर।

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