हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का समय दिवंगत पूर्वजों को समर्पित माना जाता है। इन दिनों देश के कोने कोने में पर्व को बड़े ही विधि विधान के साथ मनाया जा रहा है। यह अवधि हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक रहती है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दौरान पितरों की आत्माएं अपने वंशजों के द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य से तृप्त होकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
षष्ठी तिथि का विशेष महत्व
पितृपक्ष की प्रत्येक तिथि का अलग-अलग महत्व बताया गया है। इनमें से षष्ठी तिथि को अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक दान करने से पितरों को शांति मिलती है और व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।
दान करते समय इन बातों का रखें ध्यान
- दान हमेशा श्रद्धा और विनम्रता से करें।
- दान की वस्तुएँ स्वच्छ और उपयोगी होनी चाहिए।
- दान हमेशा जरूरतमंद और योग्य व्यक्ति को करना चाहिए।
- दान करते समय मन में किसी प्रकार का अहंकार या दिखावा नहीं होना चाहिए।
- शास्त्रों में कहा गया है कि “दान में पवित्रता और सच्चे भाव” सबसे महत्वपूर्ण हैं।
हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि हर व्यक्ति पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं—
- देव ऋण
- ऋषि ऋण
- पितृ ऋण
पितृपक्ष 2025 की षष्ठी तिथि पूर्वजों की शांति और आशीर्वाद पाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन श्रद्धा से किए गए अनाज, वस्त्र, फल, मिठाई, तिल और जल के दान से पितरों को संतुष्टि मिलती है और पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
यह समय केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और आभार व्यक्त करने का भी अवसर है।
 
								