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राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के दिनों में यह संघर्ष और भी खुलकर सामने आ गया है। अजमेर और कोटा जैसे जिलों में जिला कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्षों के चयन को लेकर हालात इतने बिगड़ गए कि यह विवाद सार्वजनिक मंचों और यहां तक कि शौचालयों की दीवारों तक पहुंच गया।

पर्यवेक्षक के सामने हंगामा

5 अक्टूबर को केंद्रीय पर्यवेक्षक अशोक तंवर अजमेर पहुंचे थे। उनका मकसद कार्यकर्ताओं से राय लेकर जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष के चयन के लिए पैनल तैयार करना था। लेकिन रायशुमारी का यह कार्यक्रम पार्टी कार्यकर्ताओं के हंगामे में बदल गया।

एक तरफ राठौड़ समर्थक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने दावा किया कि संगठनात्मक स्तर पर काम वही कर रहे हैं। दूसरी तरफ पायलट गुट के विजय जैन थे, जिन्होंने राठौड़ के अस्तित्व को ही नकार दिया। दोनों गुटों के बीच जमकर नारेबाजी और तीखी झड़प देखने को मिली।

गहलोत बनाम पायलट की लड़ाई का असर

राजस्थान कांग्रेस में वर्षों से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच वर्चस्व की लड़ाई जारी है। मुख्यमंत्री पद को लेकर हुए संघर्ष से लेकर संगठनात्मक ढांचे तक, हर जगह इन दोनों गुटों का प्रभाव साफ नजर आता है।

आज भी स्थिति यह है कि जिले-दर-जिले कांग्रेस कार्यकर्ता दो हिस्सों में बंटे हुए हैं। यही वजह है कि संगठनात्मक नियुक्तियां विवाद का रूप ले लेती हैं।

कार्यकर्ताओं की नाराजगी और चिंता

कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग इस बात से चिंतित है कि बार-बार की गुटबाजी और इस तरह की घटनाओं से पार्टी की साख पर विपरीत असर पड़ रहा है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब संगठन सुदृढ़ करने की कवायद हो रही है, तब कुछ लोग जानबूझकर माहौल को खराब कर रहे हैं।

बता दें कि, राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई समस्या नहीं है, लेकिन अब यह एक ऐसे स्तर पर पहुंच चुकी है जहां व्यक्तिगत हमलों और पोस्टरबाजी से माहौल बिगड़ रहा है। अजमेर की घटना ने साफ कर दिया कि संगठनात्मक मजबूती के बजाय गुटबाजी और आपसी खींचतान ही प्रमुख एजेंडा बन गया है।

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