राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं। यह संगठन न केवल भारत की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्थाओं में से एक है, बल्कि अपने अनुशासन, सेवा और वैचारिक योगदान के लिए भी जाना जाता है। संघ की पहचान का सबसे अहम प्रतीक उसका गणवेश है, जिसने समय-समय पर बदलावों का सामना किया और हर युग के साथ खुद को ढाला।
संघ गणवेश का इतिहास और बदलाव
संघ का पहला गणवेश तय हुआ था खाकी शॉर्ट्स, सफेद शर्ट, चमड़े की बेल्ट, काली टोपी और लंबे मोजों के साथ। यह गणवेश 1925 से लेकर दशकों तक संघ की पहचान बना रहा।
संघ का गणवेश उसकी पहचान का पहला माध्यम है, जिसने समय के साथ बदलते समाज और परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढाला। यह बदलाव दिखाता है कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल सकते हैं।
100 वर्षों के इस सफर में गणवेश की कहानी केवल कपड़ों की नहीं, बल्कि अनुशासन, सेवा और राष्ट्रभक्ति की कहानी है। चीन युद्ध से लेकर आपदा राहत तक, संघ के स्वयंसेवक हर जगह सक्रिय रहे। आज जब संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तब उसका गणवेश केवल संगठन की नहीं, बल्कि एक सदी की यात्रा का भी प्रतीक है।
बता दें कि, संघ का गणवेश उसकी पहचान का पहला माध्यम है, जिसने समय के साथ बदलते समाज और परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढाला। यह बदलाव दिखाता है कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल सकते हैं। 100 वर्षों के इस सफर में गणवेश की कहानी केवल कपड़ों की नहीं, बल्कि अनुशासन, सेवा और राष्ट्रभक्ति की कहानी है। चीन युद्ध से लेकर आपदा राहत तक, संघ के स्वयंसेवक हर जगह सक्रिय रहे। आज जब संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तब उसका गणवेश केवल संगठन की नहीं, बल्कि एक सदी की यात्रा का भी प्रतीक है।