दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था एक बार फिर बड़े झटके की ओर बढ़ती दिख रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए जी7 देशों से अपील की है कि वे भारत और चीन से होने वाली रूसी तेल की खरीद पर 50 से 100 फीसदी तक का टैरिफ लगाएं। की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप का मानना है कि भारत और चीन रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदारों में शामिल हैं और उनकी निर्भरता ही पुतिन की युद्ध मशीन को चलाए रखे हुए है।
हालांकि यूरोपीय संघ इस प्रस्ताव पर सहज नहीं दिख रहा है. ब्रसेल्स का मानना है कि भारत और चीन जैसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर इस तरह का भारी टैरिफ आर्थिक जोखिम और प्रतिशोधी कदमों को जन्म दे सकता है. ईयू इसके बजाय अपनी ऊर्जा नीति बदलने और 2027 तक रूसी तेल-गैस पर निर्भरता खत्म करने के पक्ष में है.
G7 बैठक में होगा फैसला
बता दें कि, ट्रंप के इस नए दांव पर शुक्रवार को जी7 देशों के वित्त मंत्री वीडियो कॉल के जरिए चर्चा करेंगे. इस समय जी7 की अध्यक्षता कर रहा कनाडा ने बैठक की पुष्टि की है और कहा है कि वह रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए आगे के कदम उठाने पर विचार करेगा.
पीस एंड प्रॉस्पेरिटी एडमिनिस्ट्रेशन की योजना
ट्रंप प्रशासन इसे अपनी “Peace and Prosperity Administration” का अहम हिस्सा बता रहा है। वॉशिंगटन का मानना है कि रूस की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाए बिना उसकी सैन्य क्षमता को कमजोर करना असंभव है। इसलिए, अमेरिकी राष्ट्रपति लगातार अपने सहयोगी देशों पर दबाव बना रहे हैं कि वे भी इस अभियान में साथ दें।
भारत-चीन के लिए क्या मायने रखते हैं ये टैरिफ?
भारत और चीन दोनों ही ऊर्जा की दृष्टि से दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में शामिल हैं।
- भारत ने रूस से तेल आयात को पिछले कुछ वर्षों में कई गुना बढ़ाया है, क्योंकि उसे रियायती दरों पर क्रूड ऑयल मिल रहा है।
- चीन भी रूस का सबसे बड़ा ऊर्जा साझेदार है और दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध काफी गहरे हो चुके हैं।
अगर अमेरिका और जी7 देश वाकई 100% टैरिफ लगाने में सफल हो जाते हैं तो भारत और चीन की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा।
जी 7 बैठक पर टिकी निगाहें
इस पूरे मसले पर शुक्रवार को जी7 देशों के वित्त मंत्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चर्चा करेंगे। वर्तमान में जी7 की अध्यक्षता कनाडा कर रहा है और उसने इस बैठक की पुष्टि की है। कनाडा का कहना है कि वह रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए आगे के कदमों पर विचार करेगा।
बता दें कि, ट्रंप की नई पहल ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल पैदा कर दी है। अगर जी7 देश इस कदम को मंजूरी देते हैं तो भारत और चीन के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। वहीं, यूरोपीय संघ की असहमति से यह भी साफ है कि यह फैसला आसान नहीं होगा।