देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद उपराष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हो चुका है। एनडीए के उम्मीदवार और वरिष्ठ नेता सीपी राधाकृष्णन (CP Radhakrishnan) ने विपक्षी गठबंधन “इंडी” (INDI) के प्रत्याशी बी. सुदर्शन रेड्डी (B. Sudarshan Reddy) को हराकर यह चुनाव जीत लिया है।
जानकारी दे दें कि, राज्यसभा के महासचिव और चुनाव अधिकारी पीसी मोदी ने परिणामों की घोषणा की। उनके अनुसार, सीपी राधाकृष्णन को कुल 452 वोट मिले, जबकि बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट प्राप्त हुए। इस प्रकार राधाकृष्णन भारी बहुमत से विजयी होकर देश के 15वें उपराष्ट्रपति चुने गए।
सीपी राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर
सीपी राधाकृष्णन राजनीति में एक लंबे और समृद्ध अनुभव वाले नेता हैं। वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता रहे हैं और वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भी हैं।
उनका राजनीतिक सफर सामाजिक कार्यों और संगठनात्मक गतिविधियों से शुरू हुआ था। तमिलनाडु से आने वाले राधाकृष्णन हमेशा से ही समाजसेवा, शिक्षा और गरीब तबकों के उत्थान से जुड़े रहे हैं। संसद और संगठन में उनकी भूमिका हमेशा प्रभावी रही है।
अब उपराष्ट्रपति के रूप में उनका दायित्व और भी बड़ा हो गया है, क्योंकि यह पद राज्यसभा के सभापति (Chairman of Rajya Sabha) का भी होता है।
पीएम मोदी ने सीपी राधाकृष्णन को दी बधाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति चुनाव में जीतने पर बधाई दी। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा कि उनका जीवन हमेशा समाज की सेवा और गरीबों व हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित रहा है। मुझे विश्वास है कि वे एक उत्कृष्ट उपराष्ट्रपति होंगे, जो हमारे संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करेंगे और संसदीय संवाद को आगे बढ़ाएंगे।
उपराष्ट्रपति पद का महत्व
भारत का उपराष्ट्रपति न केवल संवैधानिक पदाधिकारी है बल्कि राज्यसभा का सभापति भी होता है। संसद के ऊपरी सदन में विधायी कार्यवाही सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेदारी उपराष्ट्रपति की होती है।
इसके अलावा, उपराष्ट्रपति देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर होते हैं और राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार संभाल सकते हैं। ऐसे में सीपी राधाकृष्णन का अनुभव और उनकी कार्यशैली आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण साबित होगी।
बता दे दें कि, सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति पद पर कार्यकाल कई दृष्टियों से अहम होगा। संसद में विपक्ष और सरकार के बीच संवाद की कमी पिछले कुछ वर्षों में बार-बार उजागर हुई है। ऐसे में नए उपराष्ट्रपति की भूमिका होगी कि वे दोनों पक्षों को साथ लाकर स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करें।
