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रायपुर। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि और पद्मश्री से सम्मानित सुरेंद्र दुबे का आज दोपहर निधन हो गया। बुधवार को हार्ट अटैक आने के बाद उन्हें रायपुर स्थित एसीआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत और छत्तीसगढ़ समेत देशभर में शोक की लहर दौड़ गई।

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के बेमेतरा नगर में जन्में सुरेंद्र दुबे का जन्म 8 जनवरी 1953 को हुआ था। कहा जाता है कि बचपन से ही उन्हें कविता और लिखने-पढने में रुचि थी। व्यंग्य और हास्य उनकी देश और दुनिया भर में पहचान बन गई थी। उनकी शैली सहज, तीखी, और सामाजिक विडंबनाओं पर करारा प्रहार करने वाली थी। उन्होंने अपने हास्य व्यंग्य के माध्यम से गंभीर सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर भी जनमानस को झकझोरा।

सुरेंद्र दुबे करीब 5 पुस्तकें लिख चुके हैं, जिनमें सामाजिक विडंबना, जीवन के हास्य प्रसंग, और मनुष्य की प्रवृत्तियों को व्यंग्यात्मक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है। उनके मंचीय कार्यक्रमों में दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ती थी। टीवी पर भी उन्होंने कई मंचों पर उपस्थिति दर्ज कराई, जहां उनकी व्यंग्य रचनाएं दर्शकों के बीच खूब सराही जाती थीं।

वह न केवल कवि थे, बल्कि एक सशक्त वक्ता और प्रबुद्ध लेखक भी थे। हिंदी कविता मंचों पर उन्होंने काका हाथरसी की शैली को आगे बढ़ाते हुए आम जन की भाषा में हास्य का अनूठा रंग भरा। उन्हें “काका हाथरसी सम्मान” से भी नवाज़ा गया था।

राजभाषा आयोग के पहले सचिव रहे

सुरेंद्र दुबे छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पहले सचिव भी रहे। उन्होंने राज्य की राजभाषा छत्तीसगढ़ी को मान्यता दिलाने और उसकी उन्नति के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। उनके प्रयासों से छत्तीसगढ़ी भाषा को साहित्यिक मंचों पर गंभीरता से लिया जाने लगा।

वे हमेशा कहते थे, “हास्य केवल हंसाने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को आइना दिखाने की ताकत है।”

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