समाचार मिर्ची

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नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय व्यापार और ऊर्जा नीति एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में अमेरिकी प्रशासन ने रूस से कच्चा तेल खरीदने पर भारत पर कुल 50 प्रतिशत तक का शुल्क लगा दिया है, जबकि चीन, जो रूस से बड़े पैमाने पर तेल आयात करता है, उस पर फिलहाल कोई अतिरिक्त शुल्क लगाने का निर्णय नहीं लिया गया है। इस नीति में अंतर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर क्यों अमेरिका अपने दो बड़े व्यापारिक साझेदारों — भारत और चीन — के साथ इतना भिन्न व्यवहार कर रहा है।

भारत पर दो चरणों में बढ़ा शुल्क

अमेरिका ने सबसे पहले भारत पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया था। यह शुल्क रूसी तेल खरीदने पर लगाया गया था, जो पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत द्वारा किया जा रहा था। इसके बाद, पिछले सप्ताह राष्ट्रपति ट्रंप ने एक और 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की। इस तरह भारत पर कुल टैरिफ दर 50 प्रतिशत तक पहुंच गई।

चीन पर कोई शुल्क क्यों नहीं?

उसी समय, चीन, जो रूस से प्रतिदिन लाखों बैरल कच्चा तेल खरीद रहा है, उस पर अमेरिकी प्रशासन ने अभी तक कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगाया है। अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे. डी. वेंस ने ‘फॉक्स न्यूज संडे’ को दिए इंटरव्यू में कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप इस मामले में अभी विचार कर रहे हैं, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।

अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे डी वेंस ने कहा है कि उनके देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने को लेकर चीन पर शुल्क लगाने के बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं किया है क्योंकि चीन के साथ अमेरिका के संबंध ‘‘ऐसी कई चीजों को प्रभावित करते हैं जिनका रूसी स्थिति से कोई लेना-देना नहीं है.”

वेंस ने ‘फॉक्स न्यूज संडे’ से कहा, ‘‘राष्ट्रपति ने कहा है कि वह इस बारे में सोच रहे हैं लेकिन उन्होंने अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं लिया है.” वेंस से पूछा गया था कि ट्रंप भारत जैसे देशों पर रूसी तेल खरीदने के लिए भारी शुल्क लगा रहे हैं तो क्या अमेरिका चीन पर भी इसी तरह के शुल्क लगाएगा क्योंकि चीन भी रूस से तेल खरीदता है.

वही, विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की यह रणनीति केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है। चीन के साथ सीधी टकराव की स्थिति से बचने की कोशिश करते हुए, अमेरिकी प्रशासन फिलहाल ऊर्जा आयात पर टैरिफ के मुद्दे पर सतर्क रुख अपना रहा है।

भारत की ऊर्जा नीति पर असर

भारत की ऊर्जा जरूरतें दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही हैं। घरेलू उत्पादन सीमित होने के कारण भारत को अपनी तेल आवश्यकताओं का 85% से अधिक आयात करना पड़ता है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने अपने कच्चे तेल पर बड़े पैमाने पर छूट दी, जिसका फायदा उठाते हुए भारत ने रूस से तेल आयात कई गुना बढ़ा दिया।

बताते चले कि, यह टैरिफ विवाद भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के लिए एक चुनौती बन सकता है। दोनों देशों के बीच रक्षा, प्रौद्योगिकी, और व्यापार के कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ रहा है, लेकिन ऊर्जा नीति पर मतभेद गहराने से रिश्तों में तनाव की संभावना है। भारत के आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका का यह कदम ऐसे समय आया है जब भारत अपनी आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए ऊर्जा लागत को कम रखने की कोशिश कर रहा है।

ट्रंप प्रशासन का भारत पर भारी टैरिफ लगाना और चीन पर अभी तक कोई कदम न उठाना यह दर्शाता है कि अमेरिकी व्यापार और विदेश नीति में रणनीतिक प्राथमिकताएं अलग-अलग देशों के साथ भिन्न हो सकती हैं। जहां भारत के साथ यह मुद्दा ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार संतुलन का है, वहीं चीन के साथ यह व्यापक भू-राजनीतिक समीकरण का हिस्सा है।

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