छिंदवाड़ा। जिले में जहरीले कफ सिरफ से हो रही मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। 18 मौतों की पुष्टि के साथ एक बार फिर सूत्रों के हवाले से जानकारी मिल रही है कि इलाज के बीच दो और मासूम बच्चों ने दम तोड़ दिया। इसी के साथ पिछले 24 घंटों में कुल तीन मौतें हो गईं। अब ये घटना विकराल रूप लेती जा रही है। मध्य प्रदेश के इस छिंदवाड़ा जिले में कफ सिरप का वो जहर घुला हुआ है जो बच्चों की सांसें छीन रहा है, और सिस्टम की चुप्पी वो दीवार है जो सच्चाई को छिपा रही है।
ताजा मामला तामिया ब्लॉक के भरियाढना गांव का है, जहां ढाई साल की धानी डेहरिया की नागपुर मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मौत हो गई। परिजनों ने बताया कि डॉक्टर द्वारा दिए गए कोल्ड्रिफ सिरप के सेवन के बाद बच्ची की तबीयत बिगड़ गई थी और उसकी किडनी फेल हो गई।
अब तक 18 बच्चों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन सवाल ये है—कितने और नाम जुड़ेंगे इस काली सूची में, जब तक ‘इंतजार’ का खेल चलता रहेगा? ताजा मामला परासिया ब्लॉक के एक गांव का है। चार साल का छोटू, जिसकी सर्दी-खांसी को ठीक करने के लिए कोल्ड्रिफ सिरप दिया गया, नागपुर के मेडिकल कॉलेज में किडनी फेल्योर से जूझते हुए चल बसा। उसी रात, तामिया के एक और घर से तीन साल की गुड़िया की सांसें थम गईं—वही सिरप, वही डॉक्टर प्रवीण सोनी का प्रिस्क्रिप्शन, और वही अंत। परिजनों की जुबानी: “बच्चे को दवा दी, तो उल्टियां शुरू हो गईं। खाना-पीना छोड़ दिया, फिर तो बस बुखार चढ़ता गया।” और कल की तीसरी मौत? बैतूल जिले में एक और बच्चे ने हार मान ली।
ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा—छिंदवाड़ा से बैतूल तक, कोल्ड्रिफ का काला साया फैल चुका है। जांच रिपोर्ट्स में साफ है: सिरप में 48 फीसदी से ज्यादा डायथाइलीन ग्लाइकॉल, वो जहरीला केमिकल जो स्याही और पेंट में इस्तेमाल होता है, लेकिन बच्चों के गले में डाल दिया गया। तमिलनाडु की श्रीसन फार्मास्युटिकल्स कंपनी पर एफआईआर दर्ज है, लेकिन क्या ये काफी है?
अब वो एंगल, जो खबरों के पीछे छिपा हुआ है। सूत्रों के हवाले से मिल रही जानकारी के मुताबिक, डॉक्टर प्रवीण सोनी की गिरफ्तारी—जो कल रात हुई—शायद सिस्टम की नाकामी को ढकने की कोशिश है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने इसे ‘जल्दबाजी की कार्रवाई’ बताया है, जो असली दोषियों—दवा नियामक निकायों और कंपनी—का ध्यान भटकाने का प्रयास लगता है। एक डॉक्टर, जो सैकड़ों बच्चों को देख चुका है, पर क्यों गिरफ्तार? क्यों नहीं वो अधिकारी जो सालों से बैलेंस शीट अपडेट न करने वाली कंपनी को लाइसेंस देते रहे? सूत्र कहते हैं, ये गिरफ्तारी मीडिया की सुर्खियों को संतुष्ट करने के लिए है, ताकि सवाल न उठें कि 16 साल से कंपनी की न सालाना मीटिंग हुई, न ही फाइनेंशियल रिपोर्ट्स दाखिल कीं। लेकिन ये सिर्फ अफवाहें हैं, या सच्चाई का एक कोना? प्रशासन की ओर से अभी कोई स्पष्ट सूचना नहीं आई है। हम इंतजार कर रहे हैं—क्या वो बयान आएगा जो इन सवालों का जवाब दे, या फिर चुप्पी ही जवाब होगी?
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट्स में साफ है: सभी मामलों में किडनी फेल्योर। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ड्रग कंट्रोलर को हटा दिया, डिप्टी डायरेक्टर समेत तीन अधिकारियों को निलंबित किया। कोल्ड्रिफ की बिक्री पर पूरे मध्य प्रदेश में बैन, घर-घर से स्टॉक जब्त करने का अभियान। केंद्र सरकार ने भी राज्यों को अलर्ट किया—कफ सिरप का ‘विवेकपूर्ण’ इस्तेमाल सुनिश्चित करें। लेकिन ये सब बाद की बातें हैं। गांवों में मांएं अब सर्दी-खांसी सुनते ही कांप जाती हैं। बाजारों में दवाओं पर सवाल, डॉक्टरों पर शक। छिंदवाड़ा का वो छोटा सा अस्पताल, जहां बच्चे आंसू पोछते-पोछते आते हैं, अब दहशत का केंद्र बन गया है।
ये मौतें सिर्फ आंकड़े नहीं हैं—ये सिस्टम की वो दरारें हैं जो सालों से भरी नहीं गईं। दवा बनाने वाली कंपनियां बेलगाम, नियामक सोते हुए, और बीच में फंसे मासूम। 18 मौतें, 20 से ज्यादा प्रभावित। क्या ये अंत है, या शुरुआत? प्रशासन, कृपया बोलिए—इन सूत्रों की बातों पर क्या कहना है? क्या गिरफ्तारी न्याय है, या ढाल? और सबसे बड़ा सवाल: कितने और बच्चे इस जहर का शिकार होंगे, जब तक ‘रिपोर्ट का इंतजार’ चलता रहेगा?
 
								