भोपाल। राजधानी भोपाल में पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी ने मध्य प्रदेश में एक नए विवाद को जन्म दिया है। यह घटना न केवल पत्रकारिता जगत में हलचल मचा रही है, बल्कि राज्य की सियासत और प्रशासनिक व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है। जिस प्रेस को लोकतंत्र का मजबूत आधार माना जाता है, उसे कथित तौर पर फर्जी आरोपों में उलझाकर चुप कराने की कोशिश ने सरकार के ‘सुशासन’ के दावों की पोल खोल दी है।
कुलदीप सिंगोरिया का मामला सिर्फ एक पत्रकार की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है। यह उस स्वतंत्रता पर सवाल उठाता है, जो पत्रकारों को सच सामने लाने का हक देती है। क्या मध्य प्रदेश में अब सच लिखना अपराध बन गया है? क्या मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में सत्ता की आलोचना करने वालों को दबाने की नीति अपनाई जा रही है? इस पूरे घटनाक्रम को लेकर प्रदेश की राजधानी के पत्रकारों खासा आक्रोश देखने को मिल रहा है।
सच का पीछा करने की सजा?
कुलदीप सिंगोरिया लंबे समय से वरिष्ठ अधिकारियों के कथित भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर करने में जुटे थे। आरोप है कि पहले उनके परिवार को निशाना बनाकर उन्हें तोड़ने की कोशिश की गई। जब यह रणनीति नाकाम रही, तो एक कथित सड़क हादसे के बहाने उन्हें जेल भेज दिया गया। पुलिस ने इस मामले में ऐसी धाराएं लगाईं, जो किसी बड़े अपराधी के लिए भी असामान्य मानी जा सकती हैं। इस घटना के विरोध में भोपाल के पत्रकार सड़कों पर उतरे और कटारा हिल्स थाने के बाहर प्रदर्शन किया, जिसने प्रशासन के इरादों पर सवालिया निशान लगा दिया।
जन्मदिन पर ‘विवाद’ का तोहफा?
खास बात यह है कि यह पूरा वाकया मुख्यमंत्री मोहन यादव के जन्मदिन के दिन सामने आया। क्या यह संयोग था या सत्ता की ओर से एक संदेश कि असहमति की आवाज को कुचल दिया जाएगा? पत्रकारों का मानना है कि यह घटना स्वतंत्र प्रेस पर बढ़ते दबाव का प्रतीक है। पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश को ‘अजब-गजब’ कहा था, लेकिन अब यह प्रदेश पत्रकारों के लिए खतरनाक बनता जा रहा है।
सुशासन या सत्ता का दबदबा?
पिछले कुछ समय से मध्य प्रदेश में पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें आम हो गई हैं। धमकी भरे फोन, फर्जी केस और खबरें हटाने का दबाव—ये कुछ ऐसे हथकंडे हैं, जिनका सहारा लिया जा रहा है। जहां सत्ता के समर्थक पत्रकारों को संरक्षण मिल रहा है, वहीं सच का पक्ष लेने वालों को परेशान किया जा रहा है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। भोपाल में पत्रकारों का यह आंदोलन अब केवल एक व्यक्ति की रिहाई की मांग नहीं, बल्कि प्रेस की आजादी की लड़ाई बन गया है।
दो धड़ों में बंटी पत्रकारिता
मध्य प्रदेश की पत्रकारिता अब दो रंगों में दिखाई दे रही है। एक ओर वे हैं, जो सत्ता के साथ तालमेल बिठाकर चलते हैं, सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं और संकट में चुप्पी साध लेते हैं। दूसरी ओर स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो जोखिम उठाकर भी सच को सामने लाने से नहीं हिचकते। कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी के खिलाफ सड़कों पर उतरे पत्रकारों ने साबित किया कि वे सच के लिए लड़ने को तैयार हैं।
सरकार के सामने चुनौती
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को यह सोचने की जरूरत है कि क्या वे मध्य प्रदेश को ऐसा राज्य बनाना चाहते हैं, जहां पत्रकार डर के साए में काम करें? अगर नहीं, तो कुलदीप सिंगोरिया की रिहाई और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई जरूरी है। अन्यथा, यह सवाल गूंजेगा कि क्या मध्य प्रदेश में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब सिर्फ नाम का रह गया है?