वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसा शहर है जहाँ जीवन और मृत्यु एक दूसरे के साथ नृत्य करते हैं। और इस नृत्य का सबसे अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है मणिकर्णिका घाट पर।
शुक्रवार की रात, जब चिताएं जल रही थीं और आत्माएं मुक्ति पा रही थीं, उसी समय, नगर वधुएं बाबा मसाननाथ को रिझाने के लिए नृत्य कर रही थीं। यह दृश्य जितना विस्मयकारी था, उतना ही भावनात्मक भी।
एक प्राचीन परंपरा की गूंज
यह अनोखी परंपरा, जो 400 साल से भी अधिक पुरानी है, राजा मान सिंह के समय से चली आ रही है। कहा जाता है कि जब राजा ने श्मशान नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, तो नगर के संगीतकारों ने उत्सव में भाग लेने से इनकार कर दिया। तब, नगर वधुओं ने आगे आकर नृत्य करने का फैसला किया।
मुक्ति की कामना
इस वर्ष, नगर वधुओं ने बाबा मसाननाथ के सामने नृत्य करते हुए उनसे प्रार्थना की कि उन्हें अगले जन्म में इस कलंकित जीवन से मुक्ति मिले। उनके नृत्यों में दर्द था, लेकिन साथ ही उम्मीद भी थी।
दर्शकों की आँखों में अचरज और श्रद्धा
पूरी रात, दर्शक जलती चिताओं और नृत्य करती नगर वधुओं के बीच बैठे रहे। उनकी आँखों में अचरज था, लेकिन साथ ही श्रद्धा भी। यह दृश्य उन्हें जीवन और मृत्यु की क्षणभंगुरता का एहसास करा रहा था।
एक अनोखा उत्सव
यह कार्यक्रम सिर्फ एक नृत्य प्रदर्शन नहीं था। यह जीवन, मृत्यु और मुक्ति का एक अनोखा उत्सव था, जो काशी के मणिकर्णिका घाट पर हर साल आयोजित किया जाता है।