मिस्र के रेड सी तट पर बसे शहर शर्म अल-शेख में इस सप्ताह शुरू हुए शांति सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति को लेकर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सवाल उठाए हैं। यह सम्मेलन इजरायल-गाजा संघर्ष के समाधान की दिशा में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। इस वैश्विक बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, फलिस्तीन और मिस्र सहित करीब 20 देशों के शीर्ष नेता शामिल हो रहे हैं।
सम्मेलन का उद्देश्य: इजरायल-गाजा संघर्ष के स्थायी समाधान की खोज
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी की मेजबानी में यह शांति सम्मेलन आयोजित किया गया है, जिसकी सह-अध्यक्षता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और सीसी कर रहे हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, फलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास, और कई अरब देशों के शीर्ष नेता इसमें शामिल हैं।
सम्मेलन से पहले रिहा हुए बंधक, इजरायल ने भी दिखाई नरमी
सम्मेलन से ठीक पहले एक बड़ा घटनाक्रम हुआ। हमास ने 20 बंधकों को रिहा किया, जिनमें से सात को अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस को सौंपा गया, जबकि 13 अन्य को दूसरी खेप में छोड़ा गया।
इसके जवाब में, इजरायल ने भी वेस्ट बैंक की जेलों से कई फलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया है। इसे सम्मेलन से पहले “सकारात्मक माहौल” बनाने की दिशा में एक संकेत माना जा रहा है।
रत की भूमिका और अंतरराष्ट्रीय अपेक्षाएं
भारत ने हमेशा से इजरायल और फलिस्तीन दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद दोनों देशों के नेताओं से अलग-अलग समय पर मुलाकात की है। भारत की विदेश नीति “दोनों पक्षों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व” पर आधारित रही है।
बता दें कि, शर्म अल-शेख शांति सम्मेलन में भारत की सीमित उपस्थिति पर उठे सवाल सिर्फ थरूर बनाम मोदी का मामला नहीं हैं, बल्कि यह उस व्यापक बहस का हिस्सा हैं जो भारत की वैश्विक भूमिका और कूटनीतिक दृष्टिकोण से जुड़ी है। क्या भारत “रणनीतिक संयम” के रास्ते पर है या उसने “कूटनीतिक अवसर” खो दिया — इसका जवाब समय ही देगा। लेकिन एक बात तय है कि इजरायल-गाजा संघर्ष जैसे जटिल संकटों के बीच भारत से दुनिया की उम्मीदें अब सिर्फ “दर्शक” के रूप में नहीं, बल्कि सक्रिय मध्यस्थ और शांति के सूत्रधार के रूप में बढ़ती जा रही हैं।