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बारिश के मौसम में किन फसलों की खेती से होगा लाभ कैसे बने लखपत्ति बागवानी के क्षेत्र में यह समय बेहद अनुकूल माना जाता है। प्राकृतिक रूप से भरपूर नमी होती है, जो फलदार पौधों की तेजी से वृद्धि और बेहतर उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है बारिश का मौसम किसानों के लिए बागवानी की शुरुआत का सुनहरा समय होता है।

नई दिल्ली:भारत में जैसे ही मानसून दस्तक देता है, वैसे ही किसानों की उम्मीदें भी हरियाली की ओर बढ़ने लगती हैं। बारिश का मौसम खेती-किसानी के लिए नई संभावनाओं और अवसरों का संदेश लेकर आता है। विशेष रूप से बागवानी के क्षेत्र में यह समय बेहद अनुकूल माना जाता है। कृषि के अनुसार, यह वह समय है जब मिट्टी में प्राकृतिक रूप से भरपूर नमी होती है, जो फलदार पौधों की तेजी से वृद्धि और बेहतर उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।इस मोसम में कम समय में अच्छा उत्पादन और मुनाफा होता हैं।

जानकारी के लिए बता दें कि, मानसून के मौसम में मिट्टी में प्राकृतिक रूप से उच्च नमी पाई जाती है, जिससे पौधों को अतिरिक्त सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है। इस समय पर लगाए गए पौधे ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं और जल्दी फल देने लगते हैं। इससे किसान कम समय में अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों प्राप्त कर सकते हैं। इस मौसम में कम लागत और कम देखभाल वाली खेती की जा सकती है, जो छोटे किसानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होती है।

विशेषज्ञ राह के अनुसार, फलों की खेती मानसून में करना किसानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी हो सकता है सरकार मानसून के मोसम में कैसे खेती करनी चाहिए इसकी जानकारी भी किसानों को देती हैं सही जानकारी से खेती अच्छी होती है सभूी को बारिश का इंतजार होता हैं ।

बता दें कि,अनार का पौधा सूखे और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, लेकिन मानसून में इसकी पौध रोपाई करने पर यह तेजी से विकसित होता है। अनार का उपयोग न केवल फल के रूप में बल्कि जूस, दवाई और सौंदर्य प्रसाधनों में भी होता है, जिससे इसका बाजार हमेशा सक्रिय बना रहता है।

नींबू की खेती किसानों के लिए “कम लागत, ज्यादा मुनाफा” का उदाहरण है। इसका उपयोग घरेलू, औद्योगिक और औषधीय रूप में भी होता है। नींबू 9-12 महीनों में फल देना शुरू कर देता है और इसकी मांग गर्मियों में चरम पर होती है।

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि, फलों की खेती के लिए सबसे जरूरी बात है – सही भूमि का चयन, अच्छी नर्सरी से पौधे लेना, और प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करना। वे बताते हैं-

  • मिट्टी की जाँच करें: बलुई दोमट मिट्टी इन फलों के लिए आदर्श मानी जाती है। pH मान 6.5–7.5 के बीच होना चाहिए।
  • गड्ढे की तैयारी: पौधों को रोपने से पहले 1x1x1 मीटर के गड्ढे खोदें और उसमें गोबर की खाद, नीम की खली और थोड़ी-सी मिट्टी मिलाएं।
  • फसलों की दूरी: पौधों के बीच 4 से 5 फीट की दूरी रखें ताकि उन्हें पर्याप्त सूर्यप्रकाश और हवा मिल सके।
  • सिंचाई: मानसून के दौरान सिंचाई की जरूरत कम होती है, लेकिन जल जमाव से बचाव जरूरी है।

इस संबंध में भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें फलदार पौधों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। इनमें पौधरोपण पर सब्सिडी, ड्रिप सिंचाई योजना, नर्सरी से सब्सिडी रेट पर पौधे देने की योजना आदि शामिल हैं। किसान इन योजनाओं का लाभ उठाकर अपनी लागत को घटा सकते हैं और मुनाफा बढ़ा सकते हैं।



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