दिल्ली। दिल्ली में रबी सीजन की सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसलों में से एक सरसों इस समय अपने पीले फूलों से खेतों को सुनहरा रंग दे रही है। वर्ष 2025 में सरसों और रेपसीड की खेती का रकबा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचकर लगभग 87 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पश्चिम बंगाल जैसे प्रमुख राज्यों में इस फसल की बुआई में बढ़ोतरी देखी गई है, जिससे देश में खाद्य तेलों की घरेलू उत्पादन क्षमता मजबूत हुई है। लेकिन इस खुशी के बीच एक बड़ी चुनौती भी किसानों के सामने खड़ी है – ठंड और कोहरे के मौसम में माहू (एफिड) कीट का बढ़ता प्रकोप।
यह कीट पौधे के रस चूसने के साथ-साथ मीठा हनीड्यू (चिपचिपा पदार्थ) निकालता है, जिस पर काली फफूंद (सूटी मोल्ड) विकसित हो जाती है। इससे पत्तियां काली पड़ जाती हैं, प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है और पौधा सूखने लगता है। फूल झड़ जाते हैं, फलियां विकसित नहीं हो पातीं और दाने छोटे व कम तेलयुक्त रह जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो उपज में 30 से 90 प्रतिशत तक की हानि हो सकती है। देर से बोई गई फसलों में इसका प्रकोप और अधिक देखा जाता है।
इसीलिए कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ अब एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) पर जोर दे रहे हैं, जिसमें स्टिकी ट्रैप (चिपचिपा जाल) एक प्रमुख, इको-फ्रेंडली और कम खर्चीला तरीका है। स्टिकी ट्रैप पीले रंग की प्लास्टिक या कार्डबोर्ड की शीट होती है, जिस पर विशेष चिपचिपा गोंद या तेल लगाया जाता है। माहू कीट पीले रंग की ओर अधिक आकर्षित होते हैं, क्योंकि यह फूलों जैसा लगता है। जब ये कीट ट्रैप की ओर उड़ते हैं, तो चिपचिपे पदार्थ में फंसकर मर जाते हैं।
यह विधि न केवल माहू कीट को कम करती है, बल्कि अन्य उड़ने वाले कीटों को भी पकड़ती है। अध्ययनों से पता चला है कि पीले स्टिकी ट्रैप से कीटों की संख्या में 50-70% तक कमी आ सकती है। यदि प्रकोप अधिक हो, तो नीम का काढ़ा या जैविक कीटनाशक का छिड़काव करें।
बता दें कि, सरसों की फसल न केवल किसानों की आय का महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि देश की खाद्य तेल सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभाती है। यदि किसान समय रहते सतर्क रहें और स्टिकी ट्रैप जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करें, तो इस वर्ष रिकॉर्ड रकबे से बंपर उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।किसान भाइयों से अपील है कि अपने खेतों में नियमित निगरानी रखें, कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें और रसायनों का न्यूनतम उपयोग करें। इस तरह हम स्वस्थ फसल, सुरक्षित पर्यावरण और बेहतर आय सुनिश्चित कर सकते हैं।
