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भारत द्वारा पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद जहां पूरे देश में भारतीय सेना की बहादुरी और वीरता का जश्न मनाया जा रहा है, वहीं कर्नाटक के कांग्रेस विधायक कोथुर मंजुनाथ के बयान ने देश में एक नई सियासी बहस को जन्म दे दिया है। विधायक ने इस सैन्य कार्रवाई को “शो-ऑफ” बताते हुए इससे जुड़े सबूतों की मांग की, जिस पर भाजपा नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।

सेना पर उठाए सवाल, भाजपा नेता अनिल पंडित का कड़ा प्रहार

कांग्रेस विधायक कोथुर मंजुनाथ के बयान के बाद भाजपा नेता और उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पदाधिकारी अनिल पंडित ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “जो लोग सेना की कार्रवाई पर सवाल उठा रहे हैं, वे असल में देशद्रोही मानसिकता के हैं। ऐसे लोगों को ब्रह्मोस मिसाइल में बांधकर पाकिस्तान भेज देना चाहिए।”

अनिल पंडित का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, और भाजपा समर्थक इसे देशभक्ति से जोड़ते हुए कांग्रेस पर तीखा हमला कर रहे हैं।

क्या था कांग्रेस विधायक का बयान?

कर्नाटक के कोलार से कांग्रेस विधायक कोथुर मंजुनाथ ने एक जनसभा के दौरान कहा, “ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक दिखावा है। यदि यह सच है तो सरकार को इसके सबूत जनता के सामने रखने चाहिए।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि “भाजपा सरकार सेना का राजनीतिक उपयोग कर रही है।”

उनका यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत ने पहली बार सार्वजनिक रूप से एक सीमापार ऑपरेशन की जानकारी साझा की थी, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंक के खिलाफ निर्णायक जवाब माना जा रहा है।

राहुल गांधी की भूमिका पर भी बवाल

ऑपरेशन सिंदूर से पहले भारत ने अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत पाकिस्तान को एक आधिकारिक सूचना दी थी। इसी पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लगातार सवाल उठाते हुए कहा कि “हमने पहले ही पाकिस्तान को सूचित क्यों किया?” इसके जवाब में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने पलटवार करते हुए कहा, “अगर जानकारी साझा करना देशद्रोह है, तो 1994 में कांग्रेस की सरकार ने यही किया था। असली देशद्रोही तो कांग्रेस ही है।”

ऑपरेशन सिंदूर: आतंक के खिलाफ निर्णायक प्रहार

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगांव में इस्लामिक आतंकियों द्वारा पर्यटकों की हत्या के बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र (PoK) में स्थित 9 आतंकी अड्डों और 9 एयरबेस को निशाना बनाया।

सूत्रों के अनुसार, इस कार्रवाई में 100 से अधिक आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई है, साथ ही पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय सहित कई रणनीतिक ठिकानों को भारी नुकसान हुआ है। इस कार्रवाई के बाद भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि आतंक के खिलाफ उसकी नीति “जीरो टॉलरेंस” की है।

राजनीति और राष्ट्रवाद के बीच उलझी बहस

जहां भाजपा और उसके समर्थक इस सैन्य कार्रवाई को भारतीय सेना की गौरवगाथा मानते हैं, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस पर पारदर्शिता की मांग करते हुए सबूतों की मांग कर रहे हैं। भाजपा का तर्क है कि “सेना के पराक्रम पर सवाल उठाना, न केवल जवानों का अपमान है, बल्कि दुश्मन को ताकत देने जैसा है।”

कांग्रेस के नेता इस बात पर अड़े हैं कि “सैन्य कार्रवाई सरकार का दायित्व है, और यदि उस पर सवाल उठते हैं तो जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।”

क्या सेना के सबूत सार्वजनिक होने चाहिए?

सेना से सबूत मांगना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक के समय विपक्ष ने इसी तरह की मांग की थी। लेकिन जानकार मानते हैं कि सैन्य कार्रवाइयों की गोपनीयता राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी होती है और उन्हें सार्वजनिक करना दुश्मन को रणनीतिक लाभ पहुंचा सकता है।

निष्कर्ष: देशभक्ति या राजनीति?

‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता ने जहां देशवासियों का मनोबल ऊँचा किया है, वहीं राजनीति ने इस पर भी मतभेद की लकीर खींच दी है। सेना के पराक्रम पर प्रश्न उठाना क्या लोकतंत्र का हिस्सा है या राष्ट्रहित के खिलाफ एक नासमझी?

समाज में यह बहस जरूरी है कि जब देश आतंक के खिलाफ निर्णायक युद्ध लड़ रहा हो, तब नेताओं को अपनी भाषा, वक्तव्य और सोच में परिपक्वता दिखानी चाहिए। जनता का विश्वास सेना पर है – और यह विश्वास राजनीति से ऊपर है।


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