नई दिल्ली। देश में जब पूरा भारत ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता पर भारतीय सेना को सलामी दे रहा था, उसी वक्त एक चौंकाने वाली खबर ने सुरक्षा एजेंसियों को हिला कर रख दिया। सेना की इस वीरता के जश्न के बीच, देश के भीतर ही कुछ लोग दुश्मन देश पाकिस्तान को खुफिया जानकारी भेजने में लगे हुए थे। पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए तीन राज्यों—हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश—से कुल 8 लोगों को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया है।
पकड़े गए आरोपियों में से चार हरियाणा के, तीन पंजाब से और एक उत्तर प्रदेश से हैं। इन सभी पर आरोप है कि वे सेना से जुड़ी गोपनीय जानकारी, फोटो, लोकेशन डिटेल्स और संवेदनशील दस्तावेज पाकिस्तान को भेज रहे थे, वो भी केवल चंद पैसों के बदले। इस खुलासे के बाद न केवल सेना में सतर्कता बढ़ा दी गई है, बल्कि पूरे देश में इस नेटवर्क से जुड़े अन्य संभावित लोगों की भी तलाश तेज कर दी गई है।
क्या है ऑपरेशन सिंदूर?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारतीय सेना द्वारा हाल ही में सीमावर्ती इलाकों में किए गए एक सटीक और साहसी सैन्य अभियान का कोडनेम था, जिसमें दुश्मन के कई आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया गया था। इस ऑपरेशन की सफलता ने पूरे देश को गौरवान्वित किया, लेकिन उसी समय भारत में रह रहे कुछ गद्दारों की करतूत ने सुरक्षा एजेंसियों को सचेत कर दिया।
कैसे हुआ जासूसी नेटवर्क का पर्दाफाश?
ऑपरेशन सिंदूर के कुछ ही दिनों बाद, भारतीय खुफिया एजेंसियों—IB और RAW—को कुछ संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी मिली। सेना से जुड़े कुछ संवेदनशील दस्तावेज़ों और फोटो का सोशल मीडिया और टेलीग्राम ग्रुप्स पर लीक होना एजेंसियों के लिए चिंता का विषय बना। तुरंत जांच शुरू की गई और मोबाइल ट्रैकिंग, कॉल रिकॉर्डिंग, डिजिटल फुटप्रिंट और सोशल मीडिया विश्लेषण के जरिये कुछ संदिग्धों की पहचान हुई।
पुलिस ने तीन राज्यों में समन्वय के साथ कार्रवाई करते हुए जिन 8 लोगों को पकड़ा है, उनके पास से कई मोबाइल फोन, फर्जी सिम कार्ड, डिजिटल डिवाइसेज़ और नकद पैसे बरामद किए गए हैं। इनमें से कई ने स्वीकार किया है कि वे पाकिस्तान स्थित हैंडलर्स से व्हाट्सएप और टेलीग्राम के माध्यम से संपर्क में थे।
पैसों के लालच में बेची देश की सुरक्षा
गिरफ्तार आरोपियों ने पूछताछ में बताया कि उन्हें एक बार में 5,000 से लेकर 20,000 रुपये तक की रकम दी जाती थी। यह रकम उन्हें या तो ऑनलाइन ट्रांसफर की जाती थी या हवाला नेटवर्क के ज़रिये मिलती थी। बदले में उनसे भारतीय सेना की गतिविधियों, सैनिकों की तैनाती, कैंट एरिया की तस्वीरें और अन्य गोपनीय जानकारियाँ भेजने को कहा जाता था। कुछ मामलों में तो आरोपी सेना के जवानों के रिश्तेदार या स्थानीय कांट्रैक्ट वर्कर थे, जिन्हें अंदर की जानकारी आसानी से मिल जाती थी।
अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की आशंका
जांच एजेंसियों को आशंका है कि यह जासूसी रैकेट किसी एक व्यक्ति या समूह तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके तार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से जुड़े हो सकते हैं। इसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, फर्जी पहचान के ज़रिए रिक्रूटमेंट, और साइबर जासूसी की तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा था। यह नेटवर्क वर्षों से धीरे-धीरे फैलाया जा रहा था, और ऑपरेशन सिंदूर के बाद सेना की गतिविधियों में बढ़ी हलचल के चलते इसकी सक्रियता बढ़ी थी।
सरकार और एजेंसियों की सख्त कार्रवाई
गृह मंत्रालय ने इस घटना को बेहद गंभीर मानते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और गृह सचिव की निगरानी में एक उच्चस्तरीय जांच समिति गठित की है। साथ ही, गिरफ्तार लोगों पर आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम 1923 (Official Secrets Act) और आईटी एक्ट के तहत गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है।
इसके अलावा सभी सैन्य अड्डों और कार्यालयों में अतिरिक्त सुरक्षा उपाय लागू कर दिए गए हैं। सैनिकों और अधिकारियों को विशेष निर्देश जारी किए गए हैं कि वे अपनी व्यक्तिगत डिजिटल गतिविधियों को सीमित रखें और किसी भी अनजान नंबर या संपर्क से सतर्क रहें।
देशभर में मचा आक्रोश
इस खुलासे के बाद पूरे देश में गुस्से की लहर है। सोशल मीडिया पर लोग इन ‘गद्दारों’ को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं। कुछ सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि देश को अंदरूनी दुश्मनों से भी उतना ही खतरा है जितना कि सीमा पार के आतंकियों से। अगर समय रहते यह जासूसी रैकेट न पकड़ा जाता, तो यह देश की सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता था।
निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर की वीरगाथा के पीछे छिपे इस विश्वासघात ने यह साबित कर दिया है कि केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक खतरे भी उतने ही भयावह हैं। भारत जैसे विशाल और शक्तिशाली राष्ट्र को ऐसे तत्वों से हर समय सतर्क रहना होगा। सेना और सुरक्षा एजेंसियां जहां सीमाओं की सुरक्षा में जुटी हैं, वहीं नागरिकों का भी कर्तव्य है कि वे देश विरोधी किसी भी गतिविधि की सूचना तुरंत संबंधित अधिकारियों तक पहुँचाएं।
इस घटनाक्रम ने सुरक्षा एजेंसियों को नई चुनौती तो दी है, पर साथ ही देश को यह भी दिखा दिया कि दुश्मनों की साज़िश कितनी भी गहरी हो, भारतीय एजेंसियां और जनता उन्हें उजागर करने में सक्षम हैं।