ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तान की पोल खोलने वाले MPs के डेलिगेशन में शामिल नहीं होंगे यूसुफ पठान, TMC ने बताई वजह
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के तहत सात प्रतिनिधि दल (Delegations) गठित किए हैं, जिनमें देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के कुल 51 सांसदों को शामिल किया गया है। इन दलों का उद्देश्य विश्व के 33 देशों में जाकर पाकिस्तान की साजिशों और उसके काले कारनामों को उजागर करना है। इस महत्त्वपूर्ण मिशन में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद यूसुफ पठान का नाम भी शुरू में शामिल था, लेकिन बाद में टीएमसी ने उनके नाम को वापस लेने का फैसला किया है।
यह निर्णय राजनीतिक और रणनीतिक कारणों से लिया गया है, जिसे टीएमसी ने अपने एक आधिकारिक बयान के माध्यम से सार्वजनिक किया। इस खबर ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के तहत गठित यह डेलिगेशन भारत की विदेश नीति में विपक्षी दलों को भी शामिल कर एकजुटता का संदेश देने का प्रयास माना जा रहा था।
ऑपरेशन सिंदूर क्या है?
ऑपरेशन सिंदूर केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक विशेष पहल है, जिसका उद्देश्य विश्व स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ भारत की स्थिति को मजबूत बनाना और उसकी गलत राजनीतिक, आतंकवादी तथा सामरिक गतिविधियों की पोल खोलना है। इसके तहत विभिन्न विपक्षी और सत्ता पक्ष के सांसदों को अलग-अलग देशों का दौरा कर वहां के नागरिकों, सरकारों और वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान की नकारात्मक छवि उजागर करनी है।
सरकार ने इस ऑपरेशन के तहत 7 अलग-अलग डेलिगेशन बनाए हैं, जिनमें कुल 51 सांसद शामिल हैं। इसमें कांग्रेस, भाजपा, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी समेत अन्य दलों के नेता शामिल हैं। इस मिशन का उद्देश्य न केवल पाकिस्तान की आलोचना करना है बल्कि यह भी दिखाना है कि देश के सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं।
यूसुफ पठान का नाम वापस लेने का फैसला
तृणमूल कांग्रेस ने अपने सांसद यूसुफ पठान का नाम इस डेलिगेशन से वापस लेने का फैसला किया है। टीएमसी ने स्पष्ट किया है कि इस कदम के पीछे राजनीतिक रणनीति और पार्टी की आंतरिक विचारधारा जिम्मेदार है। टीएमसी के सूत्रों के अनुसार, पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि उसका राजनीतिक एजेंडा और विदेश नीति में शामिल कदम देश के हितों के साथ मेल खाते हों।
यूसुफ पठान की उपस्थिति इस डेलिगेशन में पार्टी के लिए कुछ संवेदनशील राजनीतिक मुद्दों को जन्म दे सकती थी, इसलिए टीएमसी ने उन्हें इस मिशन से अलग करने का निर्णय लिया। टीएमसी ने यह भी संकेत दिया है कि वे देश के हित में काम करना चाहते हैं, लेकिन इस प्रकार के मिशनों में शामिल होने के लिए पार्टी को भरोसेमंद और सामंजस्यपूर्ण रणनीति बनानी होगी।
विपक्षी दलों की भूमिका
ऑपरेशन सिंदूर के तहत गठित डेलिगेशन में कई विपक्षी दलों के सांसद शामिल किए गए हैं। यह कदम केंद्र सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति माना जा रहा है, जिससे यह संदेश जाता है कि पाकिस्तान विरोधी रुख केवल सत्ता पक्ष का नहीं, बल्कि विपक्षी पार्टियों का भी है।
कांग्रेस सहित कई अन्य दलों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है और अपने-अपने सांसदों को इस मिशन में भेजा है। यह कदम न केवल भारत की विदेश नीति को मज़बूती देगा, बल्कि भारत की एकता और अखंडता को भी विश्व मंच पर मजबूत करेगा।
राजनीतिक और कूटनीतिक महत्व
पाकिस्तान के खिलाफ चलाए जा रहे इस अभियान का राजनीतिक और कूटनीतिक महत्व बहुत अधिक है। विश्व के कई देशों में पाकिस्तान अपनी छवि सुधारने के लिए लगातार प्रयासरत है, वहीं भारत के इस ऑपरेशन का मकसद पाकिस्तान की साजिशों को विश्व समुदाय के सामने बेनकाब करना है।
यह डेलिगेशन विभिन्न देशों में जाकर वहां के नीति निर्धारकों, मीडिया और नागरिक समाज से संवाद करेगा ताकि पाकिस्तान के आतंकवाद और उसकी गुप्त गतिविधियों को रोका जा सके। साथ ही यह भारत के प्रति उनके दृष्टिकोण को सकारात्मक रूप देने में भी सहायक होगा।
टीएमसी के फैसले पर राजनीतिक बहस
यूसुफ पठान को डेलिगेशन से हटाने के टीएमसी के फैसले ने राजनीतिक बहस को जन्म दिया है। कई राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, टीएमसी का यह कदम अपनी पार्टी की आंतरिक राजनीति और पाकिस्तान से जुड़ी संवेदनशीलता को लेकर उठाया गया है।
कुछ राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि टीएमसी देश की विदेश नीति में एक सशक्त भूमिका निभाना चाहती है, लेकिन साथ ही वह अपनी पारंपरिक राजनीतिक ताकत और विचारधारा को भी बनाए रखना चाहती है।