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संभल जामा मस्जिद विवाद में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: सर्वे पर रोक से इनकार, मुस्लिम पक्ष को झटका

उत्तर प्रदेश के संभल जिले की ऐतिहासिक जामा मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद में सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा मस्जिद में एडवोकेट कमिश्नर के माध्यम से कराए गए सर्वे को वैध ठहराया और मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। इससे मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है जबकि हिंदू पक्ष के लिए यह निर्णय राहत भरा माना जा रहा है।

सर्वे को लेकर क्या था विवाद?

संभल की जामा मस्जिद को लेकर पिछले कुछ समय से कानूनी विवाद जारी है। हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्थानीय अदालत ने मस्जिद परिसर का एडवोकेट कमिश्नर द्वारा सर्वे कराने का आदेश दिया था। यह सर्वे दो चरणों में – 19 नवंबर और 24 नवंबर को हुआ। सर्वे की रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत की जा चुकी है।

हालाँकि, मस्जिद कमेटी ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि सर्वे का आदेश बिना उनकी जानकारी और बिना पक्ष को सुने ही दिया गया, जो न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है। इसके अलावा, मुस्लिम पक्ष ने ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ का हवाला देते हुए यह भी तर्क दिया कि इस मामले की सुनवाई अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती।

हाईकोर्ट ने खारिज की आपत्तियाँ

मामला जब इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा, तो वहां मुस्लिम पक्ष ने अपील दायर कर एडवोकेट कमिश्नर के सर्वे पर रोक लगाने की मांग की। लेकिन हाईकोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि निचली अदालत के आदेश में कोई प्रक्रिया संबंधी खामी नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदू पक्ष द्वारा दायर याचिका पहली नजर में सुनवाई योग्य है और उस पर कानूनी प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ा जा सकता है।

हाईकोर्ट ने ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ के हवाले को भी इस मामले में लागू नहीं माना और कहा कि इस याचिका को खारिज करने का कोई ठोस आधार नहीं है। इस प्रकार, मस्जिद में हुए सर्वे को कानूनी वैधता मिल गई है।

क्या है ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’?

1991 में पारित ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट’ के तहत यह प्रावधान किया गया था कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस रूप में थे, उन्हें उसी रूप में बरकरार रखा जाएगा। इस कानून के अनुसार, किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक स्वरूप को चुनौती नहीं दी जा सकती।

हालांकि, कोर्ट ने यह माना कि यह मामला पूरी तरह इस एक्ट के दायरे में नहीं आता और चूंकि याचिका सुनवाई योग्य है, इसलिए अदालत इसमें दखल दे सकती है।

अब आगे क्या?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब यह मामला फिर से निचली अदालत में सुना जाएगा। सबसे अहम बात यह है कि अब एडवोकेट कमिश्नर की सर्वे रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा, जिससे यह मामला नई दिशा ले सकता है।

हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद की जगह पहले कोई प्राचीन मंदिर था, जिसके निशान आज भी मौजूद हैं। इस दावे की पुष्टि के लिए ही अदालत ने सर्वे कराने का आदेश दिया था। सर्वे रिपोर्ट में क्या तथ्य सामने आए हैं, यह अब अगली सुनवाई में स्पष्ट होगा।

राजनैतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

इस मामले में कोर्ट के फैसले के बाद विभिन्न धार्मिक व सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। हिंदू पक्ष ने इसे “सत्य की दिशा में पहला कदम” बताया है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे “संविधान व अल्पसंख्यकों के अधिकारों के खिलाफ” करार दे रहा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और अन्य इस्लामिक संगठनों ने इस फैसले की समीक्षा की मांग की है।

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