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भारत एक आस्था और अध्यात्म से जुड़ा देश है। यहां देवी-देवताओं की पूजा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा है। इन्हीं आस्थाओं और परंपराओं का एक अद्भुत संगम है नवरात्रि। वर्ष में चार बार आने वाले नवरात्रि में से शारदीय नवरात्रि का महत्व सबसे अधिक होता है। इस पर्व में नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन देवी का एक विशेष स्वरूप पूजित होता है, और प्रत्येक स्वरूप जीवन के अलग-अलग आयामों में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।

कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी?

मां ब्रह्मचारिणी, मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं। उनका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – “ब्रह्म” का अर्थ है तपस्या और “चारिणी” का अर्थ है आचरण करने वाली। इस प्रकार, मां ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ – “तप का आचरण करने वाली देवी”।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने का संकल्प लिया, तब उन्होंने घोर तपस्या की। उसी दौरान वे ब्रह्मचारिणी के रूप में जानी गईं। उनके हाथ में एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में कमंडल है। वे नंगे पैर चलती हैं और उनका स्वरूप अत्यंत शांत, सौम्य और तेजस्वी है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से जीवन में संयम, शांति और तप का भाव विकसित होता है। इनकी कृपा से भक्त को सफलता, आत्म-विश्वास और लक्ष्य प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इस कारण, जिन लोगों की कुंडली में मंगल दोष होता है, उनके लिए यह पूजा विशेष लाभकारी होती है।

बता दें कि, शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन, मां ब्रह्मचारिणी की आराधना के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन की गई पूजा न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से लाभकारी है, बल्कि जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी लाती है। जो साधक मन, वचन और कर्म से मां ब्रह्मचारिणी की भक्ति करते हैं, वे सफलता, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करते हैं।

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